HimachalPradesh

मौत के बाद भी काम आएगा 102 साल के जांबाज फौजी का शरीर

फाइल फोटो केप्टन अच्छर सिंह

मंडी, 14 मई (Udaipur Kiran) । मंडी शहर के जेल रोड़ में रहने वाले जिले के सरकाघाट उपमंडल के गांव सरस्कान के मूल निवासी सूबेदार मेजर ऑनरेरी केप्टन अच्छर सिंह ने जहां अपनी जवानी के 30 साल भारतीय सेना में रहते हुए वीरता, सेवा और प्रेरणा की जीवंत मिसाल की तरह अर्पित किए। वहीं 102 साल की आयु पूरे करने पर बीते दिन जब उनका निधन हुआ तो उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार उनके मृत शरीर को श्री लाल बहादुर मेडिकल कालेज नेरचौक में दान दे दिया गया ताकि प्रशिक्षु डाक्टरों के शोध कार्य के लिए इस्तेमाल हो सके।

12 अप्रैल 1923 को सरकाघाट उपमंडल के गांव सरस्कान में पैदा हुए अच्छर सिंह 1940 से लेकर 1969 तक भारतीय सेना में अपनी अनुकरणीय सेवाएं दी। द्वितीय विश्व युद्ध ,1939-1945, के दौरान ब्रिटिश इंडियन आर्मी के सिग्नल कोर में बसरा, काहिरा, सिसिली और रंगून में उन्होंने अपने अदम्य साहस का परिचय दिया था। 1965 में भारत पाक युद्ध में भी उन्होंने अपनी सेवाएं दी जिसके फलस्वरूप उन्हें रक्षा पदक 1965 से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें सेवा के दौरान 8 वीरता पुरस्कार भी मिले।

सेवानिवृति के बाद उन्होंने जालंधर और आइआइटी कानपुर में एनसीसी प्रशिक्षक के तौर पर नई पीढ़ी को प्रेरित किया। 2007 में उन्होंने अपनी देहदान करने का निर्णय लिया और आईजीएमसी शिमला को चुना मगर बाद में इसे लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कालेज नेरचौक के लिए स्थानांतरित कर दिया गया। उनके बेटे रिटायर बैंक अधिकारी एम सिंह ने बताया कि उनकी इच्छा के मुताबिक निधन के बाद उनके शरीर को परिवार, रिश्तेदार व गांव के लोग विधिवत रेडक्रास के वाहन में नेरचौक मेडिकल कालेज छोड़ आए।

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(Udaipur Kiran) / मुरारी शर्मा

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मौत के बाद भी काम आएगा 102 साल के जांबाज फौजी का शरीर

फाइल फोटो केप्टन अच्छर सिंह

मंडी, 14 मई (Udaipur Kiran) । मंडी शहर के जेल रोड़ में रहने वाले जिले के सरकाघाट उपमंडल के गांव सरस्कान के मूल निवासी सूबेदार मेजर ऑनरेरी केप्टन अच्छर सिंह ने जहां अपनी जवानी के 30 साल भारतीय सेना में रहते हुए वीरता, सेवा और प्रेरणा की जीवंत मिसाल की तरह अर्पित किए। वहीं 102 साल की आयु पूरे करने पर बीते दिन जब उनका निधन हुआ तो उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार उनके मृत शरीर को श्री लाल बहादुर मेडिकल कालेज नेरचौक में दान दे दिया गया ताकि प्रशिक्षु डाक्टरों के शोध कार्य के लिए इस्तेमाल हो सके।

12 अप्रैल 1923 को सरकाघाट उपमंडल के गांव सरस्कान में पैदा हुए अच्छर सिंह 1940 से लेकर 1969 तक भारतीय सेना में अपनी अनुकरणीय सेवाएं दी। द्वितीय विश्व युद्ध ,1939-1945, के दौरान ब्रिटिश इंडियन आर्मी के सिग्नल कोर में बसरा, काहिरा, सिसिली और रंगून में उन्होंने अपने अदम्य साहस का परिचय दिया था। 1965 में भारत पाक युद्ध में भी उन्होंने अपनी सेवाएं दी जिसके फलस्वरूप उन्हें रक्षा पदक 1965 से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें सेवा के दौरान 8 वीरता पुरस्कार भी मिले।

सेवानिवृति के बाद उन्होंने जालंधर और आइआइटी कानपुर में एनसीसी प्रशिक्षक के तौर पर नई पीढ़ी को प्रेरित किया। 2007 में उन्होंने अपनी देहदान करने का निर्णय लिया और आईजीएमसी शिमला को चुना मगर बाद में इसे लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कालेज नेरचौक के लिए स्थानांतरित कर दिया गया। उनके बेटे रिटायर बैंक अधिकारी एम सिंह ने बताया कि उनकी इच्छा के मुताबिक निधन के बाद उनके शरीर को परिवार, रिश्तेदार व गांव के लोग विधिवत रेडक्रास के वाहन में नेरचौक मेडिकल कालेज छोड़ आए।

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(Udaipur Kiran) / मुरारी शर्मा

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