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महिला होने के आधार पर नहीं किया जा सकता पदोन्नति से वंचित, राज्य सरकार भेदभावपूर्ण प्रावधानों को दूर करने के लिए ले नीतिगत निर्णय

कोर्ट

जयपुर, 8 मई (Udaipur Kiran) । राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि यह बड़े दुख की बात है कि आज भी समाज में लैंगिक पूर्वाग्रह व्याप्त है। महिलाओं और लड़कियों के साथ कई तरीकों से भेदभाव हो रहा है। जबकि यह दुनिया एक समान हैं, जहां सभी के साथ समान व्यवहार होना चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने राज्य सरकार को कहा कि वह महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार को बढ़ावा देने वाले प्रावधानों को दूर करने के लिए नीतिगत निर्णय लेकर कार्रवाई करे। वहीं अदालत ने याचिकाकर्ता को प्रिंसिपल पद पर उस दिन से पदोन्नत करने को कहा है, जिस दिन उससे जूनियर पुरुष व्याख्याताओं को पदोन्नत किया गया था। जस्टिस अनूप कुमार ढंड ने यह आदेश रजनी भारद्वाज की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।

याचिका में अधिवक्ता वीके नैन ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता स्कूल व्याख्याता भर्ती में 4 नंबर पर मेरिट में आई थी। इसके बाद उसे लडकों के स्कूल राजकीय उच्च माध्यमिक स्कूल, रामगढ़ में नियुक्ति दी गई और वह पूरे सेवाकाल में लडकों के स्कूल में ही कार्यरत रही। याचिका में कहा गया कि विभाग की ओर से प्रिंसिपल पद पर पदोन्नति के लिए जारी मेरिट लिस्ट में याचिकाकर्ता का नाम शामिल नहीं किया गया। जबकि मेरिट में 8वां और 31वां स्थान रखने वाले पुरुष व्याख्याताओं को पदोन्नत कर दिया गया। याचिका में कहा गया कि राजस्थान शिक्षा सेवा नियम, 1970 के नियम 4 में लडकों और लडकियों के स्कूलों के लिए अलग-अलग कैडर बनाया गया है। याचिकाकर्ता को हमेशा लडकों के स्कूल में पदस्थापित रखा गया और उसे सिर्फ महिला होने के कारण पदोन्नति से वंचित कर दिया गया। दूसरी ओर राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता महिला व्याख्याता है, इसलिए पदोन्नति और वरिष्ठता के लिए उसका मामला लड़कियों के संस्थानों तक ही सीमित रहेगा। इसलिए याचिकाकर्ता के कम योग्यता वाले पुरुषों की पदोन्नति के लिए विचार किया गया।

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(Udaipur Kiran)

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