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मेधा पाटकर को एक लाख रुपए के जुर्माना मामले में अगली सुनवाई 27 मई काे

saket court, delhi

नई दिल्ली, 3 मई (Udaipur Kiran) । दिल्ली के साकेत कोर्ट ने दिल्ली के उप-राज्यपाल वीके सक्सेना की ओर से दाखिल आपराधिक मानहानि मामले में दोषी करार दी गई नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर को एक लाख रुपए के जुर्माने के मामले पर सुनवाई टाल दी है। एडिशनल सेशंस जज विशाल सिंह ने मामले की अगली सुनवाई 27 मई को करने का आदेश दिया।

सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि दिल्ली हाई कोर्ट में सेशंस कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें फिलहाल सजा पर रोक लगाई गई है और हाई कोर्ट में अगली सुनवाई 20 मई को होनी है। उसके बाद मामले की अगली सुनवाई 27 मई को करने का आदेश दिया गया। आज सुनवाई के दौरान मेधा पाटकर वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए कोर्ट में पेश हुईं।

इसके पहले 25 अप्रैल को कोर्ट ने मेधा पाटकर को जमानत दी थी। दरअसल, 23 अप्रैल को साकेत कोर्ट के सेशंस कोर्ट ने जुर्माने की एक लाख रुपए की रकम जमा नहीं करने पर मेधा पाटकर के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था। 23 अप्रैल को सुनवाई के दौरान वीके सक्सेना की ओर से पेश वकील ने कहा था कि न तो मेधा पाटकर ने जुर्माने की रकम जमा की और न ही कोर्ट में उपस्थित हुई हैं। तब कोर्ट ने मेधा पाटकर के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करने का आदेश दिय़ा।

8 अप्रैल को सेशंस कोर्ट ने दिल्ली के उप-राज्यपाल वीके सक्सेना की ओर से दाखिल आपराधिक मानहानि मामले में दोषी करार दी गई मेधा पाटकर को राहत देते हुए एक साल के लिए परिवीक्षा पर रहने का आदेश दिया था। इसका मतलब है कि मेधा पाटकर को मजिस्ट्रेट कोर्ट की ओर से मिली तीन माह की जेल की सजा की जगह एक साल के लिए परिवीक्षा के तहत रहना होगा। कोर्ट ने मेधा पाटकर को अपने अच्छे आचरण की अंडरटेकिंग की शर्त पर परिवीक्षा के रहने की अनुमति दी थी।

जुडिशियल मजिस्ट्रेट ने 1 जुलाई 2024 को मेधा पाटकर को सजा सुनाई थी। जुडिशियल मजिस्ट्रेट की कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में अधिकतम सजा दो साल की होती है लेकिन मेधा पाटकर के स्वास्थ्य को देखते हुए पांच माह की सजा दी जाती है।

मेधा पाटकर ने कोर्ट में दर्ज अपने बचाव में कहा था कि वीके सक्सेना वर्ष 2000 से झूठे और मानहानि वाले बयान जारी करते रहे हैं। पाटकर ने कहा था कि वीके सक्सेना ने 2002 में उन पर शारीरिक हमला भी किया था जिसके बाद मेधा ने अहमदाबाद में एफआईआर दर्ज कराया था। मेधा ने कोर्ट में कहा था कि वीके सक्सेना कारपोरेट हितों के लिए काम कर रहे थे और वे सरदार सरोवर प्रोजेक्ट का विरोध करने वालों की मांग के खिलाफ थे।

वीके सक्सेना ने 2001 में अहमदाबाद की कोर्ट में मेधा पाटकर के खिलाफ आपराधिक मानहानि का केस दायर किया था। गुजरात के ट्रायल कोर्ट ने इस मामले पर संज्ञान लिया था। बाद में 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई गुजरात से दिल्ली के साकेत कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया था। मेधा पाटकर ने 2011 में अपने को निर्दोष बताते हुए ट्रायल का सामना करने की बात कही। वीके सक्सेना ने जब अहमदाबाद में केस दायर किया था उस समय वो नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के अध्यक्ष थे।

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(Udaipur Kiran) / अमरेश द्विवेदी

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