Maharashtra

कांजुरमार्ग डंपिंग ग्राउंड संरक्षित वन घोषित

मुंबई, 3 अप्रैल (Udaipur Kiran) । बांबे हाई कोर्ट ने कांजुरमार्ग डंपिंग ग्राउंड के 119.91 हेक्टेयर क्षेत्र को एक बार फिर संरक्षित वन के रूप में बहाल करने का आदेश दिया है। अदालत ने राज्य सरकार की 2009 की अधिसूचना को अवैध घोषित करते हुए उसे रद्द कर दिया है। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि यह अधिसूचना वन संरक्षण अधिनियम, 1980 का उल्लंघन है और इसे केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति के बिना जारी नहीं किया जा सकता। लिहाजा मुंबई मनपा अब इस स्थान पर कचरे का निपटान नहीं कर सकेगी। अदालत ने मनपा को कचरा निपटान के लिए वैकल्पिक स्थल निर्धारित करने के लिए तीन महीने का समय दिया है। इसलिए मनपा अगले तीन महीने तक कांजुरमार्ग डंपिंग ग्राउंड पर कचरे का निपटान कर सकती है।

न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी और न्यायमूर्ति. सोमशेखर सुंदरेसन की पीठ ने अधिसूचना रद्द करते हुए स्पष्टीकरण दिया कि इस क्षेत्र को संरक्षित वन क्षेत्र से बाहर करने की राज्य सरकार की अधिसूचना वन संरक्षण अधिनियम का उल्लंघन है। अदालत ने कहा कि यह निर्णय केंद्र सरकार की अनिवार्य पूर्वानुमति के बिना लिया गया। इस भूमि पर प्राकृतिक मैंग्रोव की वृद्धि के सात यह नमक दलदली क्षेत्र का हिस्सा है। इस भूमि को पर्यावरणीय नियमों के तहत तटीय विनियमन क्षेत्र-1 (सीआरजेड) के रूप में वर्गीकृत किया गया था। भूमि सत्यापन और उपग्रह चित्रों के आधार पर जुलाई 2008 में भारतीय वन अधिनियम की धारा 29 के तहत अधिसूचना जारी कर इस स्थल को संरक्षित वन घोषित किया गया था। इसके बाद राज्य सरकार और मुंबई मनपा ने साल 2003 के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के आधार पर डंपिंग ग्राउंड को चिंचोली पोर्ट से कांजुरमार्ग स्थानांतरित करने की अनुमति दे दी। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश में वन संरक्षण अधिनियम की आवश्यकताओं, मैंग्रोव की वृद्धि और जंगल की स्थिति पर विचार नहीं किया गया। पीठ ने अधिसूचना को अवैध घोषित करते हुए कहा कि इस आदेश को इस मुद्दे पर निर्णायक आदेश नहीं माना जा सकता।

राज्य सरकार ने दावा किया था कि इस स्थल के संबंध में मूल वन अधिसूचना एक गलती थी। अदालत ने इसे खारिज कर दिया। वास्तव में भूमि की उपग्रह तस्वीरों और जमीनी सच्चाई के बाद ही इसे संरक्षित वन घोषित किया गया था। कोर्ट ने अपने 87 पृष्ठ के आदेश में यह भी कहा कि इस अधिसूचना को बिना उचित प्रक्रिया के मूल अधिसूचना में सुधार के रूप में जारी किया गया नहीं कहा जा सकता। वनशक्ति की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गायत्री सिंह और अधिवक्ता ज़मान अली ने दावा किया कि स्थल को संरक्षित वन भूमि घोषित करने वाली पूर्व अधिसूचना को रद्द करने में अनिवार्य कानूनी प्रक्रिया को दरकिनार कर दिया गया और केंद्र सरकार की अनुमति के बिना ऐसा निर्णय लेना स्पष्ट रूप से ठीक नहीं है। राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ ने प्रतिवाद किया था कि यह मैंग्रोव वन दो वार्डों में है और 20.76 हेक्टेयर तक सीमित है।

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(Udaipur Kiran) / वी कुमार

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