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पूर्व मंत्री भाया और उनकी पत्नी के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने से इनकार, दस दिन में जांच में शामिल होने के दिए आदेश

कोर्ट

जयपुर, 1 मई (Udaipur Kiran) । राजस्थान हाईकोर्ट ने पूर्व मंत्री प्रमोद जैन भाया और उनकी पत्नी सहित अन्य के खिलाफ विभिन्न थानों में दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया है। इसके साथ ही अदालत ने भाया दंपत्ति सहित अन्य को दस दिन में प्रकरण की जांच में शामिल होने के आदेश दिए हैं। जस्टिस समीर जैन ने यह आदेश प्रमोद जैन भाया और उर्मिला जैन सहित अन्य की 19 याचिकाओं को खारिज करते हुए दिए। अदालत ने कहा कि एफआईआर की निष्पक्ष जांच और उसे रद्द करने की प्रार्थना एक साथ नहीं की जा सकती। यह दोनों प्रार्थनाएं आपस में ही विरोधाभासी और कानूनी रूप से असंगत है। इसके अलावा दर्ज की गई एफआईआर अलग-अलग लेन-देन और अलग-अलग थानों में दर्ज की गई हैं। वहीं याचिकाकर्ता ने किसी पर दुर्भावना का भी आरोप नहीं लगाया है। ऐसे में सभी एफआईआर की जांच एक आईपीएस से कराने की प्रार्थना भी नहीं मानी जा सकती।

याचिकाओं में कहा गया कि गत विधानसभा चुनाव हारने के बाद याचिकाकर्ता, उसके रिश्तेदार और दोस्तों सहित उससे जुडे अन्य लोगों के खिलाफ सत्ताधारी पार्टी के प्रभाव से राजनीतिक द्वेषता के चलते डेढ़ दर्जन से अधिक एफआईआर दर्ज कराई गई। सत्ताधारी दल के सदस्यों और समर्थकों ने याचिकाकर्ताओं को निशाना बनाने के लिए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया है। सभी एफआईआर में लगाए गए आरोप अस्पष्ट, बेतुके और व्यावहारिक रूप में असंभव हैं। इन एफआईआर के अधिकांश शिकायतकर्ता सत्तारूढ़ दल के समर्थक हैं। ऐसे में उन्हें आशंका है कि इन मामलों की जांच निष्पक्ष नहीं होगी। ऐसे में लंबित एफआईआर को रद्द किया जाए। इसके अलावा इन एफआईआर और भविष्य में दर्ज होने वाली एफआईआर की संयुक्त रूप से निष्पक्ष जांच बारां व झालावाड़ जिले के अलावा अन्य जगह पदस्थापित आईपीएस अधिकारी से कराई जाए। जिसका विरोध करते हुए राज्य सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता मनोज शर्मा ने कहा कि याचिकाकर्ता एक ओर तो इन एफआईआर को रद्द करने की गुहार कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर इन्हीें एफआईआर की संयुक्त रूप से एक अधिकारी से जांच की मांग कर रहे हैं। इसके अलावा हर मामले के तथ्य, अपराध की प्रकृति और शिकायतकर्ता अलग-अलग हैं। इन एफआईआर में अवैध खनन, नगर निगम के फर्जी दस्तावेज, फर्जी पट्टा और वित्तीय अनियमिता सहित अन्य अलग तरह के आरोप हैं। ऐसे में इनकी संयुक्त रूप से जांच नहीं हो सकती। इसके अलावा याचिकाकर्ताओं ने वर्तमान जांच अधिकारियों पर दुर्भावना का भी कोई आरोप नहीं लगाया है। अदालत ने पूर्व में अंतरिम आदेश जारी कर याचिकाकर्ताओं पर दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने को कहा था, लेकिन इसके बावजूद याचिकाकर्ता जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं। इसके अलावा किसी आरोपी को यह अधिकार नहीं है कि मनचाहे अधिकारी से मनचाही दिशा में जांच कराए। दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने याचिकाओं को खारिज करते हुए याचिकाकर्ताओं को दस दिन में जांच में शामिल होने को कहा है।

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(Udaipur Kiran)

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