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गलियों से गगन तक : महिलाएं और लड़कियां भी पतंगबाजी में मशगूल रहीं

गलियों से गगन तक : महिलाएं और लड़कियां भी पतंगबाजी में मशगूल रहीं

बीकानेर, 30 अप्रैल (Udaipur Kiran) । जिस तरह महिलाओं की भागीदारी जीवन के अन्य क्षेत्रों में बढ़ी है, उसी तरह से आखाबीज व आखातीज (अक्षय तृतीया) पर पतंगबाजी में भी अब वे अपने जौहर दिखाने लगी है। बरसों पहले तक महिलाएं छतों पर केवल पुरूषों के लिए चाय आदि खाने-पीने की सामग्री देने या कपड़े सुखाने को आया करती थी लेकिन अब वे बाकायदा टोपी पहनकर, चश्मे लगाकर पतंगे काटती है और ‘बोई काटिया’ भी बोलती है। हालांकि युवतियां पुरूषों की तरह जुनून से पतंगबाजी नहीं करती लेकिन पतंगो का एंजॉय पूरा करती है।

अन्य उत्सवों की तरह परिवार के साथ मिलकर त्यौहार मनाने से त्यौहार का आनन्द कई गुना बढ़ जाता है। जिस तरह से होली में बीकानेर के सभी छोटे-बड़े लोग होली के रंग में रंग जाते है ठीक उसी तरह आखातीज पर भी नेता, मंत्री, विधायक, प्रशासनिक अधिकारी, वकील, डॉक्टर साहित्यकार, कलाकार, पत्रकार, उद्योगपति अपने-अपने परिवारों अथवा मित्रों के साथ जमकर पतंगबाजी का आनन्द उठाते दिखते है। न केवल पतंगे उड़ाते है बल्कि बच्चों की तरह पतंग लुंटते भी है। बीकानेर में पतंग लुंटने का क्रेज पतंग उड़ाने से कई ज्यादा है। यह एक खास तरह का सुख है जिसे गंवाना यहां के पतंग रसियों को हर्गिज मंंजुर नहीं है। बच्चों का सम्पूर्ण ध्यान पतंगो को लुंटने पर कैन्द्रित होता है। अगर आपके खड़े रहते आपकी छत से कोई कटी पतंग आगें निकल जाए तो इज्जत का सवाल बन जाता है। आखाबीज-आखातीज के दो दिनों में लगभग हर बच्चा औसत न ५० से ६० पतंगे लुंटकर इकट्ठी कर लेता है। इतना ही नहीं कटी पतंग आती देखकर बुजुर्गों में भी बच्चों सी चंचलता आ जाती है। बुधवार को आखातीज के मौके पर युवा, बुजुर्ग, बच्चों के साथ महिलाओं ने भी गर्मी की परवाह किए बगैर जमकर पतंगबाजी की।

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(Udaipur Kiran) / राजीव

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