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सोनीपत: पृथ्वी को माता, आकाश को पिता मानने वाली संस्कृति से ही पर्यावरण संरक्षण: सिंह

सोनीपत: दीनबंधु  छोटू राम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मुरथल के कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश  सिंह पौधारोपण करते हुए।

सोनीपत, 22 अप्रैल (Udaipur Kiran) । दीनबंधु छोटू राम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय,

मुरथल के कुलपति प्रो. श्री प्रकाश सिंह ने पृथ्वी दिवस के अवसर पर विश्वविद्यालय परिसर

में पौधारोपण करते हुए भारतीय संस्कृति पर कहा कि ऋग्वैदिक काल से ही भारत में पृथ्वी

को माता और आकाश को पिता के रूप में देखा गया है। यह परंपरा हमारे लोकाचार और धार्मिक

अनुष्ठानों में आज भी जीवित है जैसे तुलसी, पीपल और वट वृक्ष की पूजा।

प्रो. सिंह ने कहा कि भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण

कोई नया विचार नहीं है, बल्कि यह हमारी प्राचीन परंपरा का अभिन्न हिस्सा है। वैदिक

ग्रंथों में पृथ्वी को पूजनीय बताया गया है। अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में कहा गया

है कि मनुष्य, पशु, पक्षी, पर्वत, नदियाँ और सरोवर सब पृथ्वी की संतान हैं। जब हर व्यक्ति

इस भाव को अपनाएगा, तब धरती वास्तव में स्वर्ग बन सकती है।

उन्होंने चिंता व्यक्त की कि आज धरती का तापमान लगातार बढ़

रहा है और यह वैश्विक संकट बन चुका है। लेकिन इसका समाधान हमारे अपने संस्कारों और

जीवनशैली में ही छिपा है। यजुर्वेद के मंत्रों में संपूर्ण ब्रह्मांड में शांति की

कामना की गई है वायु, जल, औषधि, वनस्पति और विश्व में शांति का भाव निहित है।

प्रो. सिंह ने जल संरक्षण की भी आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने

कहा कि वैदिक युग से जल को आचमनीय और पूजनीय माना गया है। जल जीवन का आधार है, और इसके

बिना मानव अस्तित्व की कल्पना असंभव है। उन्होंने यह आह्वान किया कि हम सभी को मिलकर

जल व पर्यावरण की रक्षा के लिए प्रयास करना चाहिए ताकि पृथ्वी का संतुलन बना रहे।

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(Udaipur Kiran) शर्मा परवाना

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