

गोरखपुर, 19 अप्रैल (Udaipur Kiran) ।दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग तथा इंटैक के तत्वावधान में विरासत दिवस के अवसर पर आपदा, संघर्ष एवं विकास के परिवेश में विरासत का संरक्षण विषय पर विमर्श आयोजित हुआ। विमर्श का आरंभ करते हुए महावीर कोंडई ने विरासत के प्रकार पर चर्चा करते हुए विरासत को संरक्षित करने के कानूनी पहलुओं पर अपना चिंतन साझा किया। उन्होंने विरासत को संरक्षित करने हेतु इंटैक के संघर्षों को भी रेखांकित किया।
विभागाध्यक्ष प्रोफेसर प्रज्ञा चतुर्वेदी ने कहा कि विरासत मूर्त एवं अमूर्त दोनों प्रकार का होता है। विचार एवं मूल्य भी विरासत के अंतर्गत आते हैं। गोरखपुर में विंध्यवासिनी पार्क में रखी भगवान विष्णु की प्रतिमा, विष्णु मंदिर में रखी विष्णु जी की प्रतिमा आदि गोरखपुर की महत्वपूर्ण विरासत है। इसके अतिरिक्त बौद्ध एवं जैन धर्म-दर्शन, नाथ पंथ एवं कबीर की वाणी भी महत्वपूर्ण अमूर्त विरासत है।
इतिहासविद प्रोफेसर राजवंत राव ने कहा कि वर्तमान मनुष्य अतीत के मनुष्य की कृतियां एवं सृष्टियों का मौजूदा जीवंत स्मारक हैं, जो कुछ भी हम अपने पूर्वजों से उत्तराधिकार में प्राप्त करते हैं, वह सब विरासत का हिस्सा है। इसके अंतर्गत भारतीय ज्ञान परंपरा की समस्त धाराएं अंतर्भूत होती हैं। संवाद, भारतीय ज्ञान परंपरा की महत्वपूर्ण विरासत है, जिससे भारतीय ज्ञान परंपरा निरंतर जीवंतता प्राप्त करती रही है। आज की गैर रोमांटिक दुनिया ने भौतिक अमीरी एवं संवेदनात्मक दरिद्रता का युग्म चुना है, जिसके कारण विरासत के प्रति युवा पीढ़ी उदासीन है। आज आवश्यकता है कि हम विकास, उपयोगितावाद एवं विरासत संरक्षण में संतुलन बनाए रखें।
विरासत संरक्षण के इस विमर्श में विश्वविद्यालय के शिक्षकों समेत शोधार्थी एवं शहर के विभिन्न गणमान्य शामिल हुए।
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(Udaipur Kiran) / प्रिंस पाण्डेय
