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मातहतों पर  नियंत्रण न रख पाना कदाचार नहीं : हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकाेर्ट्

–रिटायर्ड जेल सुपरिटेंडेंट के पेंशन से 10 प्रतिशत कटौती का आदेश रद्द

–जेल की सुरक्षा की जिम्मेदारी जेलर और डिप्टी जेलर पर अधिक

प्रयागराज, 15 अप्रैल (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अपने अधीनस्थों पर नियंत्रण न रख पाना कदाचार की श्रेणी का अपराध नहीं है। कदाचार, लापरवाही से भिन्न मामला है। इसलिए ऐसे मामले में सिविल सर्विस रेगुलेशन की धारा 351 (ए) के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती है।

कोर्ट ने रिटायर्ड जेल सुपरिटेंडेंट राज किशोर सिंह की याचिका को स्वीकार करते हुए उनकी पेंशन से 3 वर्षों तक 10 प्रतिशत की कटौती करने के आदेश को रद्द कर दिया है। राज किशोर सिंह की याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने दिया।

याची पर इटावा जेल का सुपरिटेंडेंट रहते हुए दो दोष सिद्ध बंदियों के जेल से भाग जाने के मामले में विभागीय जांच गठित की गई। जांच रिपोर्ट में कहा गया कि याची का अपने मातहतों पर कोई नियंत्रण नहीं था, जिसकी वजह से सुरक्षा में चूक हुई और बंदी भागने में सफल रहे। उसे सिविल सर्विस रेगुलेशन की धारा 351ए के तहत पेंशन से 10 प्रतिशत की कटौती 3 वर्ष तक करने का दंड दिया गया। जबकि याची उस समय रिटायर हो चुका था।

कोर्ट का कहना था कि सिविल सर्विस रेगुलेशन की धारा 351ए के तहत पेंशन सिर्फ गंभीर कदाचरण या राज्य सरकार को वित्तीय क्षति पहुंचने की स्थिति में ही रोकी जा सकती है। इसमें मातहतों पर नियंत्रण न कर पाना शामिल नहीं है। कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि जेल की सुरक्षा में मुख्य भूमिका अन्य मातहत अधिकारियों की थी। सुपरिटेंडेंट का काम सिर्फ उनका निरीक्षण करना था।

कोर्ट ने कहा, जेल मैन्युअल के अनुसार सुरक्षा के लिए जेलर और डिप्टी जेलर अधिक जिम्मेदार है। जबकि उनको सिर्फ लघु दंड से दंडित किया गया। कोर्ट ने कहा कि इस बात से भी कोई इनकार नहीं है कि जेल के सीसीटीवी कैमरे ठीक से काम नहीं कर रहे थे और जेल में सुरक्षा कर्मियों की कमी थी। याची ने सुपरिंटेंडेंट रहते हुए इसे लेकर के कई पत्र भी लिखे थे। मगर कोई कार्यवाही नहीं की गई, इसलिए उसे किसी कदाचार या लापरवाही का दोषी नहीं करार दिया जा सकता है।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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