
छोटे बच्चे की परवरिश के साथ पीएचडी पूरी की
सूरत, 7 अप्रैल (Udaipur Kiran) । बेटी को गोद में लेकर जब रिसर्च पेपर पढ़ती थीं, तो लगता था जैसे दो जिंदगियों को एक साथ आगे बढ़ा रही हूँ… वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय के 56वें दीक्षांत समारोह में जब कल्पना पवार को पीएचडी की उपाधि प्रदान की गई, तब उनकी आंखों में केवल खुशी ही नहीं, बल्कि संघर्षों की वो चमक भी साफ झलक रही थी जो उन्होंने इस मुकाम तक पहुँचने के लिए झेली थी।
मूल रूप से महाराष्ट्र से ताल्लुक रखने वाली कल्पना पवार की यह यात्रा साधारण नहीं रही। विवाह के बाद वे सूरत आ गईं और यहीं से उन्होंने रूरल स्टडीज में अपनी पीएचडी पूरी की। राष्ट्रीय फेलोशिप मिलने के बाद उनके भीतर शोध के प्रति आत्मविश्वास और प्रेरणा जागी। उन्होंने इसे अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। यह राह आसान नहीं थी। जब उन्होंने अपनी पीएचडी की शुरुआत की, तब उनकी बेटी महज कुछ महीनों की थी। एक तरफ माँ की ज़िम्मेदारियाँ और दूसरी तरफ रिसर्च—इन दोनों के बीच संतुलन बना पाना बेहद चुनौतीपूर्ण था।
कल्पना ने बताया कि सूरत जैसे बड़े शहर में जहाँ एक ही व्यक्ति की आमदनी से घर चलाना मुश्किल होता है, वहाँ मैंने अपने पति का आर्थिक रूप से साथ देने के लिए भी खुद को सक्रिय रखा। हालांकि यह सफर कठिन था, लेकिन उन्हें परिवार का भरपूर सहयोग मिला। खासकर उनकी सासू माँ का। मेरी सासू माँ ने कभी मेरे लिए कोई रुकावट नहीं खड़ी की। उन्होंने हमेशा यही चाहा कि मैं माँ होने के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी पूरी करूं।
कल्पना पवार का कहना है कि विश्वविद्यालय के फैकल्टी और स्टाफ ने भी उनकी इस जर्नी को आसान बनाने में मदद की। उन्हें एक विशेष कमरा आवंटित किया गया, जहाँ वे अपनी बेटी की देखभाल के साथ-साथ रिसर्च कार्य भी कर सकें।
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(Udaipur Kiran) / बिनोद पाण्डेय
