Uttrakhand

हरियाली देवी : धनतेरस की रात को होती ससुराल से मायके की यात्रा

मां हरियाली देवी  मंदिर

चैत्र नवरात्र पर विशेषरुद्रप्रयाग, 2 अप्रैल (Udaipur Kiran) । अगस्त्यमुनि ब्लॉक के रानीगढ़, धनपुर और बच्छणस्यूं पट्टी के 40 से अधिक ग्राम पंचायतों की आराध्य मां भगवती हरियाली देवी धनतेरस के पर्व पर रात को अपनी ससुराल जसोली से मायके कांठा पर्वत की यात्रा करती है। पूरी रात यात्रा घने जंगल से होकर गुजरती है। अगली सुबह सूरज की पहली किरण पर देवी अपने कांठा मंदिर में प्रवेश करती है, जहां पर मायका पक्ष के लोग गाय के दूध से बनी खीर का अपनी आराध्य देवी को भोग लगाते हैं।

उत्तराखंड में यह एकलौती देव यात्रा है, जो रात को संचालित होती है। यात्रा में शामिल होने के लिए भक्तों को एक सप्ताह पूर्व ही तामसिक भोजन का त्याग करना होता है। ऋषिकेश-बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर नगरासू से संपर्क मोटर मार्ग नगरासू-डांडाखाल-कोट मार्ग पर जसोली स्थित सिद्धपीठ हरियाली देवी का मंदिर है। जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से यह मंदिर लगभग 40 किमी दूर है। धनतेरस के पर्व पर मां हरियाली देवी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। मुख्य पुजारी द्वारा सभी गायत्री शक्तियों के आह्वान के साथ आराध्य देवी की मूर्ति को मंदिर के गर्भगृह से सभामंडप में लाया जाता है और श्रृंगार किया जाता है। अपराह्न बाद देवी की मूर्ति को डोली में विराजमान किया जाता है और पूजा-अर्चना की जाती है। शाम होते ही ढोल-दमाऊं और अन्य पारंपरिक वाद्य यंत्रों और भक्तों के जयकारों के साथ मां भगवती हरियाली देवी अपने मायके लिए प्रस्थान करती है। लगभग सात किमी लंबी इस पैदल यात्रा में देवी कोदिमा, बासों, पंचरंग्या, और कनखेल्या पड़ाव में विश्राम करती है। रातभर घने जंगल से होकर हरियाली देवी की डोली अगली सुबह सूरज की पहली किरण के साथ अपने मूल मंदिर कांठा पर्वत पहुंची है। यहां पर, देवी के मायके पक्ष धनपुर पट्टी के पाबौ गांव के ग्रामीण अपने आराध्य का भव्य स्वागत करते हैं।

जसोली हरियाली मंदिर के पुजारी विनोद प्रसाद मैठाणी बताते हैं कि मां हरियाली देवी की धनतेरस की रात ससुराल से मायके की यात्रा सदियों से संचालित होती आ रही है। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि इस यात्रा में बासों से हरियाली कांठा तक सभी भक्त नंगे पैर यात्रा करते हैं। कोट तल्ला निवासी व पर्यावरणविद जगत सिंह जंगली का कहना है कि हरियाली देवी, प्रकृति की देवी के रूप में भी पूजनीय हैं। हरियाली वन से सात नॉन ग्लेशियर नदियां निकलती हैं, जो चमोली, रुद्रप्रयाग और पौड़ी जनपद के 200 गांवों का आधार हैं। हरियाली वन को यूनेस्को के द्वारा विश्व के दस पवित्र वनों में भी शामिल किया गया है, जो गौरव की बात है।भगवान श्रीकृष्ण की बहन मां हरियालीरुद्रप्रयाग। मान्यता है कि मां हरियाली भगवान श्रीकृष्ण की बहन योगमाया का रूप है। द्वापर युग में जब मथुरा में राजा कंस ने देवकी की आठवीं संतान समझक नवजात कन्या को पत्थर पर पटकने का प्रयास किया तो वह छिटककर अंर्तध्यान हो गई थीं। किवदंती है कि वह कन्या हरी पर्वत पर उतरी थी, जिसे हरियाला कांठा के नाम से जाना जाता है। यहां बांझ, बुराश के घने जंगल के बीच मां हरियाली का प्राचीन मंदिर है। बच्छणस्यूं पट्टी के दानकोट और नवासू में भी हरियाली देवी का मंदिर है।

(Udaipur Kiran) / दीप्ति

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हरियाली देवी : धनतेरस की रात को होती ससुराल से मायके की यात्रा

मां हरियाली देवी  मंदिर

चैत्र नवरात्र पर विशेषरुद्रप्रयाग, 2 अप्रैल (Udaipur Kiran) । अगस्त्यमुनि ब्लॉक के रानीगढ़, धनपुर और बच्छणस्यूं पट्टी के 40 से अधिक ग्राम पंचायतों की आराध्य मां भगवती हरियाली देवी धनतेरस के पर्व पर रात को अपनी ससुराल जसोली से मायके कांठा पर्वत की यात्रा करती है। पूरी रात यात्रा घने जंगल से होकर गुजरती है। अगली सुबह सूरज की पहली किरण पर देवी अपने कांठा मंदिर में प्रवेश करती है, जहां पर मायका पक्ष के लोग गाय के दूध से बनी खीर का अपनी आराध्य देवी को भोग लगाते हैं।

उत्तराखंड में यह एकलौती देव यात्रा है, जो रात को संचालित होती है। यात्रा में शामिल होने के लिए भक्तों को एक सप्ताह पूर्व ही तामसिक भोजन का त्याग करना होता है। ऋषिकेश-बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर नगरासू से संपर्क मोटर मार्ग नगरासू-डांडाखाल-कोट मार्ग पर जसोली स्थित सिद्धपीठ हरियाली देवी का मंदिर है। जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से यह मंदिर लगभग 40 किमी दूर है। धनतेरस के पर्व पर मां हरियाली देवी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। मुख्य पुजारी द्वारा सभी गायत्री शक्तियों के आह्वान के साथ आराध्य देवी की मूर्ति को मंदिर के गर्भगृह से सभामंडप में लाया जाता है और श्रृंगार किया जाता है। अपराह्न बाद देवी की मूर्ति को डोली में विराजमान किया जाता है और पूजा-अर्चना की जाती है। शाम होते ही ढोल-दमाऊं और अन्य पारंपरिक वाद्य यंत्रों और भक्तों के जयकारों के साथ मां भगवती हरियाली देवी अपने मायके लिए प्रस्थान करती है। लगभग सात किमी लंबी इस पैदल यात्रा में देवी कोदिमा, बासों, पंचरंग्या, और कनखेल्या पड़ाव में विश्राम करती है। रातभर घने जंगल से होकर हरियाली देवी की डोली अगली सुबह सूरज की पहली किरण के साथ अपने मूल मंदिर कांठा पर्वत पहुंची है। यहां पर, देवी के मायके पक्ष धनपुर पट्टी के पाबौ गांव के ग्रामीण अपने आराध्य का भव्य स्वागत करते हैं।

जसोली हरियाली मंदिर के पुजारी विनोद प्रसाद मैठाणी बताते हैं कि मां हरियाली देवी की धनतेरस की रात ससुराल से मायके की यात्रा सदियों से संचालित होती आ रही है। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि इस यात्रा में बासों से हरियाली कांठा तक सभी भक्त नंगे पैर यात्रा करते हैं। कोट तल्ला निवासी व पर्यावरणविद जगत सिंह जंगली का कहना है कि हरियाली देवी, प्रकृति की देवी के रूप में भी पूजनीय हैं। हरियाली वन से सात नॉन ग्लेशियर नदियां निकलती हैं, जो चमोली, रुद्रप्रयाग और पौड़ी जनपद के 200 गांवों का आधार हैं। हरियाली वन को यूनेस्को के द्वारा विश्व के दस पवित्र वनों में भी शामिल किया गया है, जो गौरव की बात है।भगवान श्रीकृष्ण की बहन मां हरियालीरुद्रप्रयाग। मान्यता है कि मां हरियाली भगवान श्रीकृष्ण की बहन योगमाया का रूप है। द्वापर युग में जब मथुरा में राजा कंस ने देवकी की आठवीं संतान समझक नवजात कन्या को पत्थर पर पटकने का प्रयास किया तो वह छिटककर अंर्तध्यान हो गई थीं। किवदंती है कि वह कन्या हरी पर्वत पर उतरी थी, जिसे हरियाला कांठा के नाम से जाना जाता है। यहां बांझ, बुराश के घने जंगल के बीच मां हरियाली का प्राचीन मंदिर है। बच्छणस्यूं पट्टी के दानकोट और नवासू में भी हरियाली देवी का मंदिर है।

(Udaipur Kiran) / दीप्ति

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हरियाली देवी : धनतेरस की रात को होती ससुराल से मायके की यात्रा

मां हरियाली देवी  मंदिर

चैत्र नवरात्र पर विशेषरुद्रप्रयाग, 2 अप्रैल (Udaipur Kiran) । अगस्त्यमुनि ब्लॉक के रानीगढ़, धनपुर और बच्छणस्यूं पट्टी के 40 से अधिक ग्राम पंचायतों की आराध्य मां भगवती हरियाली देवी धनतेरस के पर्व पर रात को अपनी ससुराल जसोली से मायके कांठा पर्वत की यात्रा करती है। पूरी रात यात्रा घने जंगल से होकर गुजरती है। अगली सुबह सूरज की पहली किरण पर देवी अपने कांठा मंदिर में प्रवेश करती है, जहां पर मायका पक्ष के लोग गाय के दूध से बनी खीर का अपनी आराध्य देवी को भोग लगाते हैं।

उत्तराखंड में यह एकलौती देव यात्रा है, जो रात को संचालित होती है। यात्रा में शामिल होने के लिए भक्तों को एक सप्ताह पूर्व ही तामसिक भोजन का त्याग करना होता है। ऋषिकेश-बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर नगरासू से संपर्क मोटर मार्ग नगरासू-डांडाखाल-कोट मार्ग पर जसोली स्थित सिद्धपीठ हरियाली देवी का मंदिर है। जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से यह मंदिर लगभग 40 किमी दूर है। धनतेरस के पर्व पर मां हरियाली देवी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। मुख्य पुजारी द्वारा सभी गायत्री शक्तियों के आह्वान के साथ आराध्य देवी की मूर्ति को मंदिर के गर्भगृह से सभामंडप में लाया जाता है और श्रृंगार किया जाता है। अपराह्न बाद देवी की मूर्ति को डोली में विराजमान किया जाता है और पूजा-अर्चना की जाती है। शाम होते ही ढोल-दमाऊं और अन्य पारंपरिक वाद्य यंत्रों और भक्तों के जयकारों के साथ मां भगवती हरियाली देवी अपने मायके लिए प्रस्थान करती है। लगभग सात किमी लंबी इस पैदल यात्रा में देवी कोदिमा, बासों, पंचरंग्या, और कनखेल्या पड़ाव में विश्राम करती है। रातभर घने जंगल से होकर हरियाली देवी की डोली अगली सुबह सूरज की पहली किरण के साथ अपने मूल मंदिर कांठा पर्वत पहुंची है। यहां पर, देवी के मायके पक्ष धनपुर पट्टी के पाबौ गांव के ग्रामीण अपने आराध्य का भव्य स्वागत करते हैं।

जसोली हरियाली मंदिर के पुजारी विनोद प्रसाद मैठाणी बताते हैं कि मां हरियाली देवी की धनतेरस की रात ससुराल से मायके की यात्रा सदियों से संचालित होती आ रही है। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि इस यात्रा में बासों से हरियाली कांठा तक सभी भक्त नंगे पैर यात्रा करते हैं। कोट तल्ला निवासी व पर्यावरणविद जगत सिंह जंगली का कहना है कि हरियाली देवी, प्रकृति की देवी के रूप में भी पूजनीय हैं। हरियाली वन से सात नॉन ग्लेशियर नदियां निकलती हैं, जो चमोली, रुद्रप्रयाग और पौड़ी जनपद के 200 गांवों का आधार हैं। हरियाली वन को यूनेस्को के द्वारा विश्व के दस पवित्र वनों में भी शामिल किया गया है, जो गौरव की बात है।भगवान श्रीकृष्ण की बहन मां हरियालीरुद्रप्रयाग। मान्यता है कि मां हरियाली भगवान श्रीकृष्ण की बहन योगमाया का रूप है। द्वापर युग में जब मथुरा में राजा कंस ने देवकी की आठवीं संतान समझक नवजात कन्या को पत्थर पर पटकने का प्रयास किया तो वह छिटककर अंर्तध्यान हो गई थीं। किवदंती है कि वह कन्या हरी पर्वत पर उतरी थी, जिसे हरियाला कांठा के नाम से जाना जाता है। यहां बांझ, बुराश के घने जंगल के बीच मां हरियाली का प्राचीन मंदिर है। बच्छणस्यूं पट्टी के दानकोट और नवासू में भी हरियाली देवी का मंदिर है।

(Udaipur Kiran) / दीप्ति

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