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केन्द्र सरकार की सांध्यकालीन अदालतें चलाने की योजना को अमल में लाने के प्रयास शुरू

इलाहाबाद हाईकाेर्ट्

-हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने यूपी के सभी जिला जजों को पत्र भेजकर बार एसोसिएशनों से मांगा फीड बैक

प्रयागराज, 02 अप्रैल (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट के महानिबंधक ने केंद्र सरकार की सांध्यकालीन अदालत गठित करने की योजना को अमल में लाने से पहले सम्बंधित सभी लोगों खासकर वकीलों की राय व फीडबैक की रिपोर्ट मांगी है। महानिबंधक की तरफ से सभी जिला एवं सत्र न्यायाधीशों व विशेष कार्याधिकारियों को पत्र लिखकर रिपोर्ट भेजने को कहा गया है।

रजिस्ट्रार जनरल की तरफ से जारी पत्र में प्रदेश के जिला अदालतों के सभी बार एसोसिएशनों को पत्र भेजकर उनसे भी सांध्यकालीन कोर्ट चलाने को लेकर फीड बैक लेने को कहा गया है।

प्रस्तावित सांध्यकालीन अदालतें चलाने का उद्देश्य कम खर्च में सेवानिवृत्त जजों व स्टाफ की मदद से वर्तमान सुविधाओं के साथ छोटे मोटे मामलो का निपटारा करना है। इसमें छोटे आपराधिक मामले, संक्षिप्त विचारण व चेक अनादर केसों की सुनवाई होगी। अदालतें शाम पांच बजे से नौ बजे चार घंटे तक चलेगी। सकारात्मक सुझाव आने के बाद केंद्र सरकार की सांध्यकालीन अदालत चलाने की योजना को अमल में लाया जा सकेगा।

सेंटर फार कांस्टीट्यूशनल एण्ड सोसल रिफार्म के राष्ट्रीय अध्यक्ष व अधिवक्ता ए एन त्रिपाठी ने इस योजना को अव्यवहारिक करार देते हुए कहा है कि योजना रिटायरमेंट के बाद जजों को उपकृत करने व बेरोजगार युवा शक्ति में निराशा फैलाने वाली साबित होगी। योजना लक्ष्य हासिल कर सकेगी इसमें भारी संदेह है।

त्रिपाठी ने कहा न्यायपालिका जनतंत्र का एक मजबूत स्तम्भ है। इस पर आपसी विवादों व कानूनी मुद्दे तय करने की जिम्मेदारी है। अपराधी को दंडित कर निर्दोष को बरी करने की जिम्मेदारी है। वर्तमान तंत्र को सही तरीके से चलाने में विफल रहने वाले सिस्टम का यह एक शिगूफा है। योजना न्याय देने की खानापूर्ति मात्र बनकर रह जायेगी।

इन अदालतों में वकालत करने वाले वकीलों का ध्यान नहीं रखा गया है। सुबह नौ बजे से रात दस बजे तक काम करने के बाद अधिवक्ता किस लायक बचेंगे, इसका ध्यान नहीं रखा गया है। उन्होंने कहा कि कोर्ट में ट्रायल एण्ड एरर की पद्धति अपनाना न्याय हित नहीं है। यह वादकारी का हित सर्वोच्च के सिद्धांत के विपरीत है। जिला अदालतों में जजों की समय से नियुक्ति नहीं की जाती। सैकड़ों की संख्या में पद वर्षों से खाली पड़े रहते हैं। सेवानिवृत्त जजों की सेवा लेना और युवा वकीलों को जज बनने का अवसर न देने का औचित्य नहीं है।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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