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डीएमके सांसद ने कहा- परिसीमन लागू करने का अर्थ जनसंख्या पर काबू पाने वाले राज्यों को दंडित करना होगा

डीएमके सांसद पी विल्सन राज्यसभा में डीलिमेटशन पर अपने विचार रखते हुए

नई दिल्ली, 19 मार्च (Udaipur Kiran) । राज्यसभा में बुधवार को डीएमके सदस्य पी. विल्सन ने परिसीमन का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि इस समय संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन को लागू करने का अर्थ जनसंख्या पर सफलतापूर्वक काबू करने वाले राज्यों को अनुचित तरीके से दंडित करना तथा इसमें विफल रहे राज्यों को पुरस्कृत करना होगा।

विल्सन ने शून्यकाल में इस मुद्दे को उठाते हुए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के प्रति समग्र दृष्टिकोण अपनाने की भी मांग की। उन्होंने कहा कि सभी राज्यों का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए 1952, 1962 और 1972 में प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन किया गया था। कुछ राज्यों ने परिवार नियोजन नीतियों को अपनाया, जबकि अन्य ने इस मुद्दे को नजरअंदाज कर दिया। इस कारण उनकी आबादी अनियंत्रित हो गई। इसलिए इस असमानता को दूर करने के लिए 42वें संवैधानिक संशोधन ने 1971 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर 25 वर्षों के लिए परिसीमन को टाल दिया, जिससे उन राज्यों की रक्षा हुई।

उन्होंने कहा कि वर्ष 2000 में लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं में सीटों के पुनर्निर्धारण पर अगले 25 वर्षों (वर्ष 2026 तक) तक के लिए प्रतिबंध बढ़ा दिया गया क्योंकि इसका उद्देश्य जनसंख्या को सीमित करने के उपायों को प्रोत्साहित करना था। आंकड़ों से पता चलता है कि तमिलनाडु जैसे राज्यों में कुल प्रजनन दर 1.7 और केरल में 1.8 पर सीमित रही। यह दर्शाता है कि इन राज्यों ने अपनी जनसंख्या को सफलतापूर्वक स्थिर कर लिया है। इसके विपरीत, उत्तर प्रदेश में यह दर 2.4 और बिहार में 3.0 है। इसका अर्थ है कि इन राज्यों में जनसंख्या वृद्धि में तेजी जारी है। इससे पता चलता है कि 2026 में रोक हटाने का मूल तर्क अब मान्य नहीं है।

डीएमके सदस्य ने कहा कि इस तर्क पर परिसीमन को लागू करने से उन राज्यों को अनुचित तरीके से दंडित किया जाएगा जिन्होंने जनसंख्या को सीमित करने के उपायों को सफलतापूर्वक लागू किया। जबकि उन लोगों को पुरस्कृत किया जाएगा जो इसे असफल रहे। इसका परिणाम तमिलनाडु जैसे उन राज्यों के लिए आपदा साबित हो सकते हैं, जिन्होंने अपनी आबादी को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया है।

डीएमके सदस्य विल्सन ने कहा कि अगर 2026 की जनगणना के आधार पर संसदीय सीटों की संख्या बढ़ाई जाती है, तो राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों को सामूहिक रूप से 150 से अधिक अतिरिक्त सीटें मिल सकेंगी। इसके विपरीत तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना – सामूहिक रूप से केवल 35 सीटें ही हासिल कर सकेंगे। डीएमके सदस्य विल्सन ने कहा कि इसके परिणामस्वरूप इन राज्यों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व कम होगा और उनकी ताकत भी घटेगी।

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(Udaipur Kiran) / विजयालक्ष्मी

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