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स्व भारत का बोध जगाएं, बौद्धिक दासता से मुक्ति पाएंः दत्तात्रेय होसबाले

दत्तात्रेय होसबाले  (फाइल फोटो)

नई दिल्ली, 10 मार्च (Udaipur Kiran) । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह (महासचिव) दत्तात्रेय होसबाले ने आह्वान किया है कि पहले खुद में फिर सम्पूर्ण देशवासियों के मन में ‘स्व भारत’ का आत्मबोध जगाना चाहिए। इस दृष्टि से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि जी-20 और राष्ट्रपति भवन के समारोहों में उन्होंने अपनी नाम पट्टिका में ‘भारत’ लिखाकर एक संदेश देने का काम किया।

नोएडा (गौतम बुद्ध नगर) में प्रेरणा शोध संस्थान और सुरूचि प्रकाशन के द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित एक समारोह मं साफ तौर पर उन्होंने कहा कि हमें अपने गौरवशाली अतीत का पुनःस्मरण करते हुए अभिमान करने के साथ-साथ यह भी ध्यान में रखना होगा कि भारत का वर्तमान और भविष्य समर्थ, स्वाभिमानी और शक्तिशाली हो।

नोएडा (गौतम बुद्ध नगर) के पंचशील इंटर कॉलेज के खचाखच भरे विशाल सभागार में उपस्थित प्रबुद्ध जन के सामने भारत के गौरवशाली इतिहास, वर्तमान की चुनौतियों और भविष्य की दिशा का मार्ग सुझाते हुए संघ के सरकार्यवाह ने कहा कि सबसे पहले यह आवश्यक है कि हम अपने देश और समाज को बौद्धिक दासता से मुक्त कराएं।

समारोह की अध्यक्षता न्यूज-24 की प्रधान सम्पादक अनुराधा प्रसाद ने की। समारोह में इंडिया टीवी की एंकर मीनाक्षी जोशी को उनकी उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए ‘प्रेरणा विमर्श 2024’ से सम्मानित किया गया।

दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि हमें याद रखना होगा कि सन् 1600 में जब ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई तब भारत की वैश्विक जगत के कारोबार में हिस्सेदारी 23 प्रतिशत थी। वह केवल कृषि उपज के आधार पर नहीं थी बल्कि हम लोग औद्योगिक और व्यापारिक रूप से समृद्ध थे। हमारे यहां सोने की खानें नहीं हैं फिर भी हमारे मंदिरों में सोने के भंडार थे। यह हम किसी देश से लूट के नहीं लाए बल्कि व्यापार के बदले हासिल किया।

उन्होंने कहा कि हमें यह भी याद रखना होगा कि मुगल काल में किसी ने नहीं कहा होगा कि कोई आक्रमणकारी हमसे श्रेष्ठ था। ब्रिटिश राज की चालों के चलते ही हमें यह लगता है कि वे हमसे श्रेष्ठ थे। इस मानसिकता के चलते ही हम अब तक इंडिया दैट इज भारत जैसी परिभाषा को स्वीकार किए हुए हैं। देश के नाम का अनुवाद होना उस बौद्धिक दासता का ही परिचायक है।

उन्होंने कहा कि वैश्विक तौर पर यह विमर्श स्थापित होना चाहिए कि आखिर भारत का लक्ष्य और उसकी भूमिका क्या है। हमारी दृष्टि में भारत का लक्ष्य स्पष्ट है। वसुधैव कुटुम्बम को आधार बनाकर सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण की कामना करते हुए अपने देश को सर्वथा समर्थ और शक्तिशाली बनाना है। इसी बात को जी-20 सम्मेलन में सरल शब्दों में कहा गया – ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’।

होसबाले ने कहा कि हमें यह स्थापित करना होगा कि भारत विश्व के लिए जीता है। ऋषि अरविन्द ने भी कहा था कि भारत की भूमिका विश्व के लिए दीप स्तंभ की होनी चाहिए। पर यह सारी बातें व्यर्थ होंगी यदि भारत स्वयं में समर्थ और स्वाभिमान के साथ खड़ा नहीं होगा। इसलिए भारत के बारे में नकारात्मक विमर्श को, संभ्रम पैदा करनी वाली बातों को तथ्यों के साथ पराजित कर सत्य को स्थापित करना होगा। इसके लिए हम सबकी जिम्मेदारी है कि पहले स्वयं को सिद्ध करें, फिर अपने परिवार, समाज और राष्ट्र में ‘स्व’ के प्रति बोध जगाएं, नई पीढ़ी को आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के साथ ही अपनी ऐतिहासिक और गौरवशाली परम्परा और इतिहास से परिचित कराएं। अपने स्वाभिमान को जगाएं और देश का मान बढ़ाएं।

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(Udaipur Kiran) / अनूप शर्मा

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