
जम्मू, 9 मार्च (Udaipur Kiran) । होली का पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस विषय में श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष, ज्योतिषाचार्य महंत रोहित शास्त्री ने बताया कि होली के पर्व से आठ दिन पहले होलाष्टक प्रारंभ होते हैं। इस वर्ष होलाष्टक का आरंभ 7 मार्च, शुक्रवार से हुआ था, जो 14 मार्च, शुक्रवार को समाप्त होगा।
महंत रोहित शास्त्री ने बताया कि इस वर्ष होली का पर्व 14 मार्च, शुक्रवार को मनाया जाएगा। पूर्णिमा तिथि का आरंभ 13 मार्च, गुरुवार को प्रातः 10 बजकर 36 मिनट पर होगा और पूर्णिमा तिथि का समापन 14 मार्च, शुक्रवार को दोपहर 12 बजकर 25 मिनट पर होगा। फाल्गुन रात्रि पूर्णिमा व्रत 13 मार्च, गुरुवार को और फाल्गुन दिवा पूर्णिमा व्रत 14 मार्च, शुक्रवार को रखा जाएगा। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 13 मार्च, गुरुवार को रात्रि 11 बजकर 31 मिनट से रात्रि 11 बजकर 59 मिनट तक रहेगा। होलिका दहन प्रायः उत्तर प्रदेश, बिहार आदि राज्यों में प्रमुख रूप से किया जाता है।
महंत रोहित शास्त्री ने बताया कि होली एक सामाजिक पर्व है, जिसका हिंदू धर्म में विशेष स्थान है। यह पर्व पूरे भारत में बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। होली का पर्व अपने प्रारंभिक काल से ही हास-परिहास और मनुष्य की आसुरी प्रवृत्तियों के दहन का प्रतीक रहा है। यह पर्व प्रत्येक युग और परिस्थिति में सांस्कृतिक परंपराओं के साथ सामंजस्य बिठाते हुए सामाजिक समरसता, जातिगत सौहार्द और धार्मिक सद्भावना को प्रोत्साहित करता है, जो सभी के जीवन में वास्तविक रंग और आनंद लाता है।
रंगों के माध्यम से इस दिन सभी के बीच की दूरियाँ मिट जाती हैं। सभी धर्म और संप्रदाय के लोग आपसी भेदभाव को भूलकर एक-दूसरे को रंग लगाकर इस पर्व को मनाते हैं। महंत रोहित शास्त्री ने कहा कि होली रंगों का त्योहार है, लेकिन आज के आधुनिक समय में रासायनिक रंगों ने प्राकृतिक रंगों का स्थान ले लिया है, जो त्वचा के लिए हानिकारक हो सकते हैं। इसलिए होली खेलते समय सावधानी बरतनी चाहिए और केवल प्राकृतिक रंगों का ही उपयोग करना चाहिए, जो शरीर के लिए सुरक्षित होते हैं।
(Udaipur Kiran) / राहुल शर्मा
