Gujarat

ज्ञानप्रकाश स्वामी ने वीरपुर जाकर जलाराम मंदिर में मांगी माफी

माफी मांगने वीरपुर के जलाराम मंदिर पहुंचे ज्ञानप्रकाश स्वामी

-जलाराम बापा के संबंध में बयान के बाद विवाद में आये थे स्वामी

राजकोट, 07 मार्च (Udaipur Kiran) । राजकोट जिले के विश्व विख्यात तीर्थस्थल वीरपुर के संत जलाराम बापा के विषय में सूरत के अमरोली में ज्ञानप्रकाश स्वामी ने अपने विवादित बयान मामले में शुक्रवार को माफी मांग ली। स्वामी के बयान के वायरल होने के बाद रघुवंशी समाज समेत जलाराम बापा के अनुयायियों में जबर्दस्त रोष व्याप्त था। स्वामी ने वीडियो वायरल होने के बाद ही माफी मांग ली थी, लेकिन अनुयायियों का कहना था कि स्वामी वीरपुर आकर जलाराम बापा के श्रीचरणों में माफी मांगें।

वीरपुर स्थित जलाराम बापा के मंदिर में पूरे पुलिस बंदोबस्त के साथ आज स्वामी ज्ञानप्रकाश पहुंचे। मंदिर के पीछे के दरवाजे से जलाराम बापा के समक्ष आकर उन्होंने माफी मांगी। इससे पूर्व स्वामी ने वडताल टेम्पल बोर्ड के लेटरपैड में भी लिखित तौर पर माफी मांगी थी। वायरल वीडियो में सूरत के अमरोली में आयोजित कार्यक्रम के दौरान कहा था कि जलाराम बापा का इतिहास गुणातीतानंद स्वामी के साथ जुड़ा है। जलाराम बापा जूनागढ़ स्वामीनारायण मंदिर में लंबे समय तक रहे और सेवा की थी। स्वामी गुणातीतानंद वीरपुर आए थे। इस बीच जलाराम भगत को यह सूचना मिली की गुणातीतानंद वीरपुर आए हैं तो वे उन्हें बुलाने के लिए गए। इसके बाद जला भगत ने स्वामी से आशीर्वाद मांगा कि स्वामी हमारी एकमात्र इच्छा है कि यहां हमेशा के लिए सदाव्रत चले और जो कोई यहां आए उसे भोजन-प्रसाद मिले।

इस पर गुणातीतानंद स्वामी ने कहा कि पहले मुझे तो खिलाओ जला भगत। इस पर जलाराम बापा ने स्वामी गुणातीतानंद को दाल-बाटी खिलाया। इस पर गुणातीतानंद खूब प्रसन्न हुए और जलाराम बापा को आशीर्वाद दिए कि जला भगत तुम्हारा संकल्प भगवान पूरा करे और हमेशा के लिए तुम्हार भंडार भरा रहेगा। स्वामी गुणातीतानंद ने स्वामी को जो 200 साल पहले आशीर्वाद दिया, इसके फलस्वरूप आज तक बहुत ही अच्छा काम हो रहा है, अन्नदान बहुत होता है।

कौन थे जलाराम बापा-

जलाराम बापा का जन्म सन् 1799 (अर्थात 4-11-1799) में गुजरात के राजकोट जिले के वीरपुर नामक गांव में हुआ था। उनकी माता राजबाई साधु-संतों की सेवा की बहुत शौकीन थीं। कोई भी साधु-संत राजबाई के आतिथ्य के बिना वीरपुर से नहीं जा सकता था। 18 वर्ष की आयु में जलाराम बापा ने फतेहपुर के श्री भोजलराम को गुरु के रूप में स्वीकार किया और उन्हें श्री राम के नाम पर गुरु माला और मंत्र दिया गया। अपने गुरु के आशीर्वाद से उन्होंने सदाव्रत नामक भोजन केंद्र शुरू किया, एक ऐसा स्थान जहाँ सभी साधु-संत और साथ ही ज़रूरतमंद 24 घंटों के दौरान किसी भी समय भोजन कर सकते थे। आज करीब 200 साल भी यहां अखंड भोजनालय चलता है, जहां से कोई भूखा नहीं लौटता है।

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(Udaipur Kiran) / बिनोद पाण्डेय

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