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पश्चिम बंगाल के कई स्कूलों के ईसाई अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर दाखिल जनहित याचिका कलकत्ता उच्च न्यायालय से खारिज

कलकत्ता हाई कोर्ट

कोलकाता, 07 मार्च‌ (Udaipur Kiran) । कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल के कई स्कूलों के ईसाई अल्पसंख्यक दर्जे पर सवाल उठाने वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसे संस्थानों को अल्पसंख्यक दर्जा पाने के लिए सरकार से किसी प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं होती।

मुख्य न्यायाधीश टी एस शिवगणनम की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि इस विषय पर उच्चतम न्यायालय के कई फैसले हैं, जिनमें यह साफ किया गया है कि एक बार कोई संस्था अल्पसंख्यक घोषित हो जाती है, तो वह हमेशा अल्पसंख्यक संस्था ही रहती है।

अदालत ने याचिकाकर्ता की मंशा पर संदेह जताते हुए कहा कि यह स्पष्ट है कि वह इस विषय में उच्चतम न्यायालय के स्थापित कानूनी सिद्धांतों से अनभिज्ञ हैं।

खंडपीठ ने उच्चतम न्यायालय के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि कोई भी स्कूल यदि अल्पसंख्यक स्कूल है, तो वह सरकार द्वारा घोषित किए जाने या न किए जाने के बावजूद अल्पसंख्यक ही रहेगा।

इसके साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि जब सरकार किसी स्कूल को अल्पसंख्यक संस्था घोषित करती है, तो वह केवल इस तथ्य को मान्यता देती है कि वह स्कूल अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा स्थापित किया गया है और संचालित किया जा रहा है।

वर्ष 2019 में दाखिल इस याचिका में दावा किया गया था कि राज्य के कुछ विशेष स्कूलों को ईसाई अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान नहीं माना जा सकता, क्योंकि उन्होंने पश्चिम बंगाल अल्पसंख्यक आयोग से ऐसा कोई प्रमाणपत्र प्राप्त नहीं किया है।

याचिकाकर्ता ने कहा था कि किसी स्कूल को अल्पसंख्यक संस्था घोषित करने के लिए राज्य सरकार के उपयुक्त प्राधिकरण से प्रमाणपत्र लेना जरूरी है और बिना प्रमाणपत्र के कोई भी स्कूल अल्पसंख्यक होने का दावा नहीं कर सकता।

वहीं, उत्तरदायी स्कूलों के वकील ने दलील दी कि ये स्कूल 19वीं सदी में स्थापित हुए थे और तब से ही ईसाई अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त कर रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि वर्ष 2010 के बाद ही पश्चिम बंगाल अल्पसंख्यक आयोग अस्तित्व में आया, जिसने प्रमाणपत्र देने की प्रक्रिया तय की, मगर प्रमाणपत्र न होने से अल्पसंख्यक दर्जा खत्म नहीं होता।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इस संबंध में कई निर्णय हैं, जिनमें स्पष्ट किया गया है कि किसी संस्था को धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक घोषित करने के लिए हर साल सरकार से नए सिरे से मान्यता लेने की जरूरत नहीं होती।

उन्होंने यह भी कहा कि किसी संस्था का अल्पसंख्यक दर्जा किसी नियम या आयोग द्वारा खत्म नहीं किया जा सकता।

(Udaipur Kiran) / ओम पराशर

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