
सरायकेला, 28 फ़रवरी (Udaipur Kiran) । रंगोंत्सव होली भारत का प्राचीन धार्मिक सांस्कृतिक त्यौहार है। होली का त्यौहार बसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन से फाग और धमार का गीत फिजाओ में गूंजती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में गेंहू की बालियां इठलाने लगती हैं। बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियां भूलकर ढोलक – झाँझ – मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। चारों तरफ रंगों की फुहार फूट पड़ती है।
ग्रामीण क्षेत्र में होली का रंग अधिकांश लोग पलाश फुल से बनाते हैं। इसके रंग में कई दुष्प्रभाव नहीं है बल्कि औषधीय गुण है। पलाश के फूलों में कई गुण समाहित है। आयुर्वेद में इनके कई गुणों का उल्लेख मिलता है। फुल को सुखाने के बाद भींगोकर इसका पानी पीने से पेट के कीड़े दूर करने में सहायक, डायबिटीज़ को नियंत्रित करती है, बावासीर में आराम मिलता है, कामोत्तेजक हैं, आंतों में अल्सर को दूर करते हैं, पेशाब खुलकर आता है, किडनी की सेहत अच्छी रहती है, आंतों की गर्मी को कम करते हैं। फूलों का इस्तेमाल सौंदर्य प्रसाधनों में भी किया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण एवं उनके प्रेमिका राधिका सखियों संग ब्रज में होली खेला करते थे जो सनातन धर्म में प्रेम के प्रतीक के रूप में माना जाता है। आज भी ब्रज की होली विश्व प्रसिद्ध है। होली सामाजिक सद्भावना को भी बढाती है। इस दिन लोग आपसी बैर को भूल कर एक दूसरे को रंग लगाते और गले मिलते है। यह पर्व आपसी गिला शिकवा दूर करने का माध्यम भी है।
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(Udaipur Kiran) / Abhay Ranjan
