
जयपुर, 28 फरवरी (Udaipur Kiran) । पाथेय कण संस्थान द्वारा ‘पाथेय संवाद’ नाम से एक परिचर्चा का आयोजन किया गया, जिसमें प्रयागराज महाकुंभ की सर्वव्यापकता, प्राचीनता और महत्व पर विचार-विमर्श किया गया। यह गोष्ठी मालवीय नगर में आयोजित की गई, जिसमें विभिन्न विद्वानों और शोधकर्ताओं ने अपने विचार रखे।
संस्थान के अध्यक्ष एवं राजस्थान विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. नंद किशोर पाण्डेय ने महाकुंभ को मात्र स्नान नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चिंतन का प्रवाह बताया। उन्होंने कहा कि महाकुंभ हजारों वर्षों की परंपरा से जुड़ा एक श्रद्धा भाव है, जो समाज को सत्संगति का महत्व सिखाता है।
राजस्थान विश्वविद्यालय के वनस्पति विभाग के सहायक प्रोफेसर अमित कोटिया ने बताया कि रुड़की के वैज्ञानिकों के शोध के अनुसार गंगा जल में अपशिष्ट पदार्थ प्रवाहित होने के बावजूद वह बारह किलोमीटर तक प्रवाहित होने के बाद स्वयं को शुद्ध कर लेता है। इसी तरह हिंदू मन भी स्वयं को समय-समय पर संशोधित करता रहता है।
उन्होंने ब्रिटिश वैज्ञानिक हॉकिंस के एक प्रयोग का उल्लेख करते हुए बताया कि जब हैजे के जीवाणुओं को गंगाजल में डाला गया तो वे पूरी तरह नष्ट हो गए। इसी प्रकार, राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान केंद्र, लखनऊ के वैज्ञानिक प्रो. नौटियाल के शोध में यह पाया गया कि अत्यधिक हानिकारक जीवाणु ‘ईकोलाई’ भी गंगाजल में तीन दिन के भीतर समाप्त हो जाता है। उन्होंने बताया कि गंगाजल को तीन रूपों—भौतिक, रासायनिक और जैविक रूप में देखा जा सकता है। इसका सबसे बड़ा गुण यह है कि यह हानिकारक जीवाणुओं को पनपने से रोकता है। गंगाजल में ऑक्सीजन को घोलने की क्षमता अन्य नदियों की तुलना में 25 प्रतिशत अधिक होती है।
इस गोष्ठी में भारतीय नौसेना से सेवानिवृत्त महिला कमांडर श्रमोतो प्रियंका, विद्या भारती जयपुर के अध्यक्ष राममोहन सहित महाकुंभ में सम्मिलित हुए अनेक युवाओं ने अपने अनुभव साझा किए। इस अवसर पर पत्रकार, शोधकर्ता, चिकित्सक और बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन संस्थान के सहसचिव ज्ञानचंद गोयल ने किया, जबकि आभार सचिव महेंद्र सिंहल ने प्रकट किया।
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(Udaipur Kiran)
