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– उर्दू सिर्फ एक भाषा नहीं, यह एक संस्कृति और जीवन शैली है : राम बहादुर राय
– सभी भाषाओं को विकसित भारत अभियान का हिस्सा होना चाहिए : इंद्रेश कुमार
नई दिल्ली, 21 फ़रवरी (Udaipur Kiran) । उर्दू सिर्फ एक भाषा नहीं है, यह एक संस्कृति है, एक जीवन शैली है और एक समृद्ध वैश्विक भाषा है जो भारत के निर्माण और विकसित भारत की ऊंचाइयों तक पहुंचने में भी भूमिका निभा सकती है। उक्त विचार पद्म भूषण से सम्मानित इंदिरा गांधी कला केंद्र के अध्यक्ष, प्रख्यात पत्रकार, बुद्धिजीवी एवं विचारक राम बहादुर राय ने राष्ट्रीय उर्दू भाषा संवर्धन परिषद के तीन दिवसीय विश्व उर्दू सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में अपने अध्यक्षीय भाषण के दौरान व्यक्त किए।
उन्होंने आगे कहा कि उर्दू को अपने अतीत और वर्तमान पर गर्व होना चाहिए, लेकिन इसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भाषा बनाना भी जरूरी है ताकि विकसित भारत के सपने को पूरा करने में इसकी भूमिका हो। उर्दू सम्मेलन का यह पहला एजेंडा होना चाहिए। उन्होंने इस ऐतिहासिक सम्मेलन के आयोजन के लिए परिषद के निदेशक को बधाई दी और कहा कि उनके नेतृत्व में परिषद उर्दू को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक कदम उठाएगी और इसे विकसित भारत के अभियान में भी शामिल करेगी।
इस अवसर पर मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के मार्ग दर्शक इंद्रेश कुमार ने कहा कि विकसित भारत के निर्माण में देशभक्ति की सामान्य भावना भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। उन्होंने कहा कि जिस तरह भारत अतीत में शेष विश्व से बेहतर था, उसी तरह वह भविष्य में भी बेहतर हो सकता है और इसके लिए उर्दू सहित अन्य भारतीय भाषाएं सशक्त भूमिका निभा सकती हैं।
इससे पहले सम्मेलन का उद्घाटन राष्ट्रगान और दीप प्रज्वलन के साथ हुआ और परिषद के निदेशक डॉ. शम्स इकबाल ने सभी अतिथियों का पुष्पगुच्छ, शॉल और स्मृति चिन्ह भेंट कर स्वागत किया।
इस उद्घाटन सत्र में राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद के निदेशक डॉ. शम्स इकबाल ने परिचयात्मक भाषण दिया और सभी अतिथियों का स्वागत किया तथा सम्मेलन के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि विकसित भारत की परिकल्पना एक राष्ट्रीय अवधारणा है जिसके लिए समाज के हर वर्ग को सामूहिक भूमिका निभानी होगी। इसमें देश भर की भाषाओं की भी असाधारण हिस्सेदारी होगी, जिसमें हमारी उर्दू भाषा भी शामिल है। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आज तक देश के विकास और प्रगति में उर्दू भाषा और कलाकारों की अविस्मरणीय भूमिका पर प्रकाश डाला और कहा कि हमें आज भी वही भूमिका निभाने की जरूरत है। उन्होंने सम्मेलन के विषयों का उल्लेख करते हुए कहा कि उन पर प्रस्तुत शोधपत्र और चर्चाएं न केवल हमारी भाषा के विकास के लिए नए मार्ग प्रशस्त करेंगी, बल्कि विकसित भारत की परियोजना को पूरा करने का रास्ता भी दिखाएंगी।
भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के भाषा विभाग की निदेशक सुश्री सुमन दीक्षित ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उर्दू एक बहुत ही सुंदर भाषा है जिसके शब्द भारत की सभी भाषाओं में पाए जाते हैं जो इस भाषा की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। उन्होंने कहा कि परिषद 1996 से विभिन्न योजनाओं के माध्यम से उर्दू को जनता तक पहुंचा रही है और यह वैश्विक सम्मेलन भी उसी का एक हिस्सा है। उन्होंने कहा कि आज के दौर में हमें कोशिश करनी चाहिए कि उर्दू किताबों से आगे बढ़कर हर किसी तक पहुंचे, ताकि यह सिर्फ बुजुर्गों की भाषा न रह जाए, बल्कि नई पीढ़ी की भाषा भी बने। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी उर्दू का इस्तेमाल होना चाहिए और विकसित भारत के निर्माण में उर्दू की भूमिका तय होनी चाहिए।
सम्मेलन के सम्मानित अतिथि प्रो. एहतेशाम हसनैन ने अपने संबोधन में कहा कि विकसित भारत इस सम्मेलन का मुख्य विषय है, जिसमें हमारे देश की सांस्कृतिक अभिव्यक्तियां महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी, जिसमें हमारी उर्दू भाषा भी शामिल है, जिसका शब्दकोष बहुत विशाल है। उन्होंने कहा कि उर्दू एक भारतीय भाषा है, जिसके 99 प्रतिशत कार्यों का मूल संस्कृत है। उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी में उर्दू के प्रति बढ़ती रुचि स्वागत योग्य है।
सम्मानित अतिथि एनबीटी के निदेशक युवराज मलिक ने अपने मुख्य भाषण में कहा कि इस सम्मेलन का उद्घाटन दिवस बहुत यादगार है, जिसके लिए मैं परिषद के निदेशक डॉ. शम्स इकबाल को बधाई देता हूं। उन्होंने कहा कि भारत एक देश नहीं है, यह एक संस्कृति है और हमारी भाषाएं हमारी संस्कृति को प्रतिबिंबित करती हैं। उन्होंने कहा कि हर भाषा की एक संस्कृति होती है और हर संस्कृति की एक भाषा होती है, दोनों को अलग करके नहीं देखा जा सकता। युवराज मलिक ने आगे कहा कि विकसित भारत की अवधारणा एक ऐसी अवधारणा है जो न केवल आर्थिक, बल्कि बौद्धिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और भाषाई विकास का भी प्रतिनिधित्व करती है। अब हम उर्दू को केवल साहित्यिक और सांस्कृतिक विषयों तक सीमित नहीं रख सकते, बल्कि वैज्ञानिक और तकनीकी विषयों की ओर भी आना होगा। उर्दू रचनाओं का अन्य भाषाओं में अनुवाद करने तथा अन्य भाषाओं के अच्छे साहित्य का बड़े पैमाने पर उर्दू में अनुवाद करने की आवश्यकता है।
इस तीन दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन सत्र राष्ट्रगान के साथ संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम में देश-विदेश से बड़ी संख्या में उर्दू बुद्धिजीवियों, शिक्षकों और उर्दू प्रेमियों ने भाग लिया।
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(Udaipur Kiran) / मोहम्मद शहजाद
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