Uttrakhand

गुरुकुल में मनोविज्ञान की वर्तमान स्थिति तथा अनुसंधान की आवश्यकता पर परिसंवाद का आयोजन

हरिद्वार, 17 फरवरी (Udaipur Kiran) । हिन्दू सनातन संस्कृति में सुख-दुख को जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है। वैदिक तथा धर्मशास्त्र से जुड़े विद्वान सुख-दुखः का मूल कारण कर्मों काे मानते हैं। कर्मों पर आधारित सुख-दुख व्यक्ति के स्वयं के व्यवहार द्वारा संचालित रहते है, जिनके प्रभाव को समझने के लिए व्यवहार (मनोविज्ञान) की बारिकियों को जानना जरूरी होता है।

गुरुकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालय में योग एवं शारीरिक शिक्षा संकाय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शिवकुमार चौहान ने दयानंद स्टेडियम प्रांगण में भारत में मनोविज्ञान की वर्तमान स्थिति तथा अनुसंधान की आवश्यकता पर परिसंवाद में बोलते हुए कहा कि कलयुग में कर्म को यथोक्त एवं अधिक प्रासंगिक माना गया है। कर्माें की बेहतरी में मानव कल्याण का भाव निहित है। दुखी नर को नारायण मानकर तथा सेवा ही परम धर्म है, जाे अध्यात्म की दृष्टि से श्रेष्ठ कर्म बताया गया है, जिसके बल पर दुख को कम करके सुखमय मार्ग पर चलने का हौसला मिलता है।

कहा कि युवा पीढी को सुख-दुख के प्रभाव एवं कारणों तथा उत्पन्न स्थिति से विचलित होने से बचाव के लिए मार्गदर्शित किया जाना नितान्त आवश्यक है। तकनीकी संसाधन एवं भौतिकवादी युग की परिकल्पना से विचलित युवा पथभ्रमित होकर दुख के प्रभाव से नशा, घरेलू हिंसा, अमर्यादित व्यवहार एवं सभ्यता विहिन होता जा रहा है। आधुनिक परिवेश में इसका ग्राफ बढता जा रहा है। जो एक चिन्तनीय विषय है।

डॉ. शिवकुमार चौहान ने कहा कि शिक्षा-क्षेत्र मे मनोविज्ञान श्रेष्ठ कर्मों की कार्यशाला है। मन में वातावरण एवं सामाजिक परिवेश के प्रभाव से उत्पन्न सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों भाव में अधिक प्रबल भाव व्यवहार के रूप में कर्माें की पटकथा रचता है। जो सुख अथवा दुख की परिणीति तय करता है। यह चक्र निरन्तर चलता रहता है।

डॉ. चौहान ने कहा कि इसके प्रभाव से बचने के लिए संस्कार तथा बुद्वि के उपयोग, अध्यात्मिक चिन्तन तथा सदकर्मों के संचय से सुख-दुख में बेहतर सांमजस्य स्थापित किया जा सकता है। परिसंवाद में प्रशिक्षुओं ने स्वयं के व्यवहार के प्रति जिज्ञासा व्यक्त करते हुए आचरण की शुद्वि तथा सद्कर्माें को ग्रहण करने से जुड़े प्रश्नों पर भी मार्गदर्शन प्राप्त किया। प्रशिक्षुओं ने अपने फिडबैक में इस संवाद को रोमाचंक एवं ज्ञानवर्धक बताया।

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(Udaipur Kiran) / डॉ.रजनीकांत शुक्ला

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