
फरीदाबाद, 14 फरवरी (Udaipur Kiran) । 38 वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय क्राफ्ट मेले में आपणा घर में लगा विरासत प्रदर्शनी में हरियाणवी पगड़ी के प्रति मेला में आने वाले पर्यटकों का पूरा फोकस बना हुआ है। पगड़ी बंधवाने के साथ-साथ हुक्का के साथ सेल्फी लेने के लिए दिनभर पर्यटकों में होड़ सी लगी रहती है। हरियाणा का आपणा घर में विरासत की ओर से जो पारंपरिक परिधानों की प्रदर्शनी लगाई गई है, वहां पर पगड़ी बंधाओ, फोटो खिंचाओ के माध्यम से बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक हरियाणा की पगड़ी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। इस विषय में विस्तार से जानकारी देते हुए हरियाणवी संस्कृति को जन जन तक पहुंचाने वाले एवं विरासत के निदेशक डा. महासिंह पूनिया ने बताया कि हरियाणा की पगड़ी को अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड क्राफ्ट मेला-2025 में खूब लोकप्रियता हासिल हो रही है। पर्यटक पगड़ी बांधकर हुक्के के साथ सेल्फी, हरियाणवी झरोखें से सेल्फी, हरियाणवी दरवाजों के साथ सेल्फी, चारपाई व आपणा घर के दरवाजों के साथ सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं। मेला में इस माध्यम से हरियाणा की लोक सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक पगड़ी खूब लोकप्रियता हासिल कर रही है। पूनिया ने बताया कि लोकजीवन में पगड़ी की विशेष महत्ता है। पगड़ी की परम्परा का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। पगड़ी जहां एक ओर लोक सांस्कृतिक परम्पराओं से जुड़ी हुई है, वहीं पर सामाजिक सरोकारों से भी इसका गहरा नाता है। हरियाणा के खादर, बांगर, बागड़, अहीरवाल, बृज, मेवात, कौरवी क्षेत्र सभी क्षेत्रों में पगड़ी की विविधता देखने को मिलती है। प्राचीन काल में सिर को सुरक्षित ढंग से रखने के लिए पगड़ी का प्रयोग किया जाता था। पगड़ी को सिर पर धारण किया जाता है। इसलिए इस परिधान को सभी परिधानों में सर्वोच्च स्थान मिला। पगड़ी को लोकजीवन में पग, पाग, पग्गड़, पगड़ी, पगमंडासा, साफा, पेचा, फेंटा, खण्डवा, खण्डका्र आदि नामों से जाना जाता है। जबकि साहित्य में पगड़ी को रूमालियो, परणा, शीशकाय, जालक, मुरैठा, मुकुट, कनटोपा, मदील, मोलिया और चिंदी आदि नामों से भी जाना जाता है। वास्तव में पगड़ी का मूल ध्येय शरीर के ऊपरी भाग (सिर) को सर्दी, गर्मी, धूप, लू, वर्षा आदि विपदाओं से सुरक्षित रखना रहा है, किंतु धीरे-धीरे इसे सामाजिक मान्यता के माध्यम से मान और सम्मान के प्रतीक के साथ जोड़ दिया गया, क्योंकि पगड़ी सिरोधार्य है। यदि पगड़ी के अतीत के इतिहास में झांक कर देखें, तो अनादिकाल से ही पगड़ी को धारण करने की परंपरा रही है। आपणा घर के बाहर हरियाणवी पगड़ी बांध रहे मनोज कालड़ा ने बताया कि प्रतिदिन एक हजार से ज्यादा लोग शान से हरियाणवी पगड़ी बंधवाकर मेले का भ्रमण कर रहे हैं। युवाओं में भी दिनभर पगड़ी बंधवाने की होड़ लगी रहती है। कुरूक्षेत्र से मेला देखने आए युवा अंकित ने बताया कि उनके दादा पगड़ी बांधते थे। उन्हें भी पगड़ी बांधने का बहुत चाव है। फिलहाल मेला परिसर में आपणा घर में सजी विरासत प्रदर्शनी हर पर्यटक को हरियाणवी संस्कृति का संदेश दे रही है।
(Udaipur Kiran) / -मनोज तोमर
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