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देश के भूकंप संभावित क्षेत्रों में बचाव की तैयारी और पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित

राज्यसभा में गुरुवार को 'भूकंप से बचने की तैयारी' पर सवालों का जवाब देते हुए केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डा. जितेंद्र सिंह

नई दिल्ली, 13 फ़रवरी (Udaipur Kiran) । केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डा. जितेंद्र सिंह ने आज राज्यसभा में बताया कि भारत में एक सुपरिभाषित राष्ट्रीय भूकंपीय नेटवर्क है, जो पूरे देश में फैला हुआ है। यह वास्तविक समय मोड में 24×7 भूकंपीय गतिविधि की निगरानी करता है और भूकंप से संबंधित मापदंडों और रिपोर्टों को विभिन्न हितधारकों और देशभर में जनता को भूकम्प ऐप और अन्य एकीकृत प्रसार प्रणाली (जैसे वेबसाइट, सोशल मीडिया- व्हाट्सएप, एक्स, टेलीफोन, फैक्स) के माध्यम से प्रसारित करता है।

डा. जितेंद्र सिंह प्रश्नकाल के दौरान भूकंप से बचने की तैयारी पर सदन में सदस्यों के सवालों का जबाव दे रहे थे। उन्होंने कहा कि दुनिया में कुल मिलाकर भूकंप की शत प्रतिशत भविष्यवाणी संभव नहीं है। इसके बावजूद उससे सुरक्षा और बचाव के नजरिये से भारत का प्रयास ज्यादा सकारात्मक है। उन्होंने कहा कि नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के सीएम थे, तब कच्छ भूकंप के बाद गुजरात डिजास्टर मैनेजमेंट अथारिटी का गठन किया गया। उसी तर्ज पर 2005-06 में केंद्र सरकार ने नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथारिटी का गठन किया। उसी समय मोदी देश में पहली बार गुजरात में इंस्टीट्यूट आफ सिस्मोलिजिकल रिसर्च की अवधारणा लेकर आए। उसके बाद 2014 में उसी तर्ज पर इंस्टीट्यूट आफ सेंटर सिस्मोलिजिकल रिसर्च की अवधारणा लाई गई। पिछले 10 साल में इसमें तीव्र प्रगति हुई है। देश में जहां 2014 में हमारी आब्जर्वेटरी की संख्या 80 थीं, वो 10 साल में बढ़कर 166 हो गई हैं। कच्छ और भुज के अलावा हिप्र के भूकंप संवेदनशील क्षेत्रों में सतर्क निगरानी की जाती है।

मंत्री ने बताया कि 2047 को लेकर जो विजन डाक्यूमेंट सरकार बना रही है, उसमें भूकंप का संवेदनशील विषय भी है। 2021-25 के बीच मॉक ड्रिल करके भूकंप के जोखिमों को कम करने के प्रयास जारी हैं। जो इमारतें कमजोर हैं या जो भूकंप संवेदनशील क्षेत्रों में हैं, वहां रिट्रोफिटिंग और अन्य बचाव के उपाय किए गए हैं। देश का करीब 60 प्रतिशत क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील है। इसलिए नई इमारतों के लिए नए बिल्डिंग कोड तय किए गए हैं और पुरानी इमारतों के लिए रिट्रोफिटिंग कोड तय किए गए हैं। भुज क्षेत्र के अस्पतालों को भूकंप के नजरिये से ज्यादा मजबूत ढांचे पर बनाए जा रहे हैं। कहीं-कहीं पुरानी इमारतों को रिस्ट्रक्चरिंग करने के लिए आर्थिक सहायता के लिए भी प्रावधान किए गए हैं।

नेपाल में आए भूकंपों की वजह से हिमालयन बेल्ट- उत्तराखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के सीमावर्ती इलाकों में होने वाले प्रभावों के जवाब में मंत्री ने अर्ली वार्निंग सिस्टम और डिजास्टर ट्रेनिंग सिस्टम की व्यवस्था तथा जागरुकता कार्यक्रम शुरू किए जाने का हवाला दिया। उन्होंने बताया कि 2016 में नेशनल बिल्डिंग कोड विशेषकर भूकंप के खतरनाक क्षेत्रों के लिए शुरू किया गया है।

उन्होंने बताया कि भूकंप-प्रवण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे की लचीलापन जोखिम प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। इस संबंध में कई संगठन पहले से ही काम कर रहे हैं। एनडीएमए ने तेजी से बढ़ते शहरीकरण की चुनौतियों का समाधान करने और बढ़ते शहरों में भूकंप लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए भूकंप आपदा जोखिम अनुक्रमण (ईडीआरआई) परियोजना शुरू की है। भारतीय मानक ब्यूरो ने भूकंप प्रतिरोधी संरचनाओं के निर्माण के लिए मानदंड प्रकाशित किए हैं। संरचना का डिज़ाइन ऐसा होना चाहिए कि कंपन के समय पूरी संरचना भागों के संयोजन के बजाय एक इकाई के रूप में व्यवहार करे। हालांकि, अधिकांश खराब तरीके से निर्मित संरचनाओं को ध्वस्त करना और उनका पुनर्निर्माण करना किफायती नहीं है, ऐसी खराब तरीके से निर्मित संरचनाओं के लिए बीआईएस ने उनके रेट्रोफिटिंग के लिए दिशानिर्देश तैयार किए हैं। साथ ही, हुडको और बीएमटीपीसी ने इमारतों के निर्माण और रेट्रोफिटिंग के लिए दिशानिर्देश और ब्रोशर प्रकाशित किए हैं। इन दिशानिर्देशों के आधार पर, अस्पतालों, स्कूलों और पुलों जैसी महत्वपूर्ण सुविधाओं को आमतौर पर भूकंपीय ताकतों का सामना करने के लिए मजबूत किया जा सकता है।

सदन में चर्चा के दौरान बाबूभाई जेसंगभाई देसाई, आरपीएन सिंह और एस फान्गनॉन कोन्याक ने भाग लिया। इस दौरान विपक्ष के सदस्य वक्फ बिल पर गठित जेपीसी की रिपोर्ट को लेकर उत्पन्न गतिरोध के कारण वाकआउट कर गए थे, इसलिए वे चर्चा में शामिल नहीं हो सके।

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(Udaipur Kiran) / दधिबल यादव

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