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अजमेर, 11 फरवरी (Udaipur Kiran) । महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के वनस्पति तथा खाद्य एवं पोषण विभाग द्वारा आयोजित इनोवेटिव रिसर्च ऑन प्लांट-बेस्ड न्यूट्रास्यूटिकल्स और थेरैप्यूटिक्स विषयक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह में जल संसाधन मंत्री सुरेश सिंह रावत ने कहा कि प्राचीन चिकित्सा पद्धतियां हमारी धरोहर हैं और इनका वैज्ञानिक शोध से जुड़ना एक अद्भुत संवाद का प्रतीक है।
उन्होंने बाहर से आए प्रतिभागियों को पुष्कर आमंत्रित करते हुए कहा कि यह केवल ब्रह्मा जी की नगरी नहीं, बल्कि एक अद्भुत संगम स्थल है, जहां विविध संस्कृतियां और ज्ञान का मिलन होता है। भारत की पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियां, जैसे आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा और योग, ने पूरे विश्व में सम्मान अर्जित किया है। दुर्भाग्यवश, कई बार इन्हें पिछड़ा मानने की भूल की जाती है, जबकि कोरोना महामारी के दौरान नीम, गिलोय और तुलसी जैसे पौधों ने अपनी उपयोगिता सिद्ध कर दी।
रावत ने कहा कि पारंपरिक पद्धतियां आधुनिक चिकित्सा के साथ तालमेल बिठा सकती हैं। जैविक कृषि उत्पादों के महत्व पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि रसायनों के बढ़ते उपयोग के कारण पर्यावरण और जीवों पर दुष्प्रभाव हो रहे हैं, ऐसे में पारंपरिक और जैविक उपायों की ओर लौटना आवश्यक है। उन्होंने युवा वैज्ञानिकों से अपील की कि वे राजस्थान की भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए ऐसे पौधों पर शोध करें, जो कठोर परिस्थितियों में उगते हैं और जिनमें रोग प्रतिरोधक जैविक तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं।
समापन समारोह में विश्वविद्यालय में शिक्षकों और स्टाफ की कमी का उल्लेख करते हुए रावत ने इस समस्या को सरकार के समक्ष उठाने का आश्वासन दिया। उन्होंने विश्वविद्यालय के सभी आयोजकों और विजेताओं को शुभकामनाएं देते हुए ऐसे आयोजनों को जारी रखने पर जोर दिया।
समारोह का शुभारंभ मां सरस्वती की पूजा-अर्चना और दीप प्रज्वलन से हुआ। कुलपति, रजिस्ट्रार और उप रजिस्ट्रार सहित विश्वविद्यालय परिवार ने रावत का स्वागत किया। धन्यवाद ज्ञापन आयोजन सह सचिव प्रो. ऋतु माथुर ने किया और मंच संचालन डॉ. सपना जैन ने किया।
(Udaipur Kiran) / संतोष
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