Uttar Pradesh

कुंभ हमें एकता व समन्वय के साथ जीने की कला से परिचित कराता है : डॉ. लक्ष्मी गोरे 

विश्वविद्यालय की फाइल फोटो

कानपुर, 07 फरवरी (Udaipur Kiran) । प्रयागराज में आयोजित हो रहे विश्व के सबसे बड़े आयोजनों में से एक महाकुंभ का पर्व अपनी आंखों से देखना औए स्नान करना हमारे लिए बड़े ही गर्व की बात है। इसके प्रचार और प्रसार के लिए हमे आगे बढकर लोगों को सनातन धर्म के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है। महाकुम्भ आस्था और विश्वास का प्रतीक है। जो हमें एकता तथा समन्वय के साथ जीवन जीने की कला से परिचित कराता है। यह बातें शुक्रवार को सीएसजेएमयू में आयोजित कार्यक्रम के दौरान डॉ. लक्ष्मी गोरे ने कही।

छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय (सीएसजेएमयू) के शिक्षा विभाग द्वारा स्थापना दिवस समारोह पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की श्रृंखला के अंतर्गत महाकुंभ के शैक्षणिक संदर्भ विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का प्रारम्भ विभागाध्यक्षा डॉ. रश्मि गोरे द्वारा दीप प्रज्वलन से किया गया। इस अवसर पर विचार व्यक्त करते हुए कार्यक्रम संयोजिका डॉ. रत्नर्त्तु: मिश्रा ने कहा कि महाकुम्भ भारत की ध्वनि है। जिसे सुनकर भारतीय जनमानस का प्रवाह एक विशिष्ट दिशा में स्वाभाविक रूप से दिखाई देने लगता है। डॉ. बीएन मिश्रा ने भी इस अवसर पर विचार व्यक्त किया और कहा कि महाकुम्भ के शैक्षणिक और सांस्कृतिक संदर्भों को समझकर ही भारतीय समाज के समावेशी स्वरूप को समझा जा सकता है। डॉ. विमल सिंह ने इसे लोकतांत्रिक पर्व बताते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा, संस्कृत, शिक्षा और सभ्यता के संगम का उदाहरण बताया। धीरज, दिया, आयुष, मनी, सूर्यांश, सुनैना, स्नेहा, दीक्षा, मानसी, रंजीत, शुभांगी, चंचल और मोनी आदि विद्यार्थियों ने भी इस परिचर्चा में प्रतिभाग किया।

कार्यक्रम में डॉ. तनुजा भट्ट, डॉ. प्रियंका मौर्या, डॉ. गोपाल सिंह, डॉ. प्रिया तिवारी, डॉ कुलदीप सिंह, रजनी, सुशील, अनूप आदि समस्त शोध-अध्येता और विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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(Udaipur Kiran) / मो0 महमूद

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