Uttar Pradesh

सांस्कृतिक धारा और प्रवाह के क्रम में सीता की खोज ही हमारे लिए परम्परा की पहचान : अष्टभुजा शुक्ल

सीता की खोज’ और ‘परंपरा की पहचान’ पुस्तक पर केंद्रित संवाद

—बीएचयू में सीता की खोज’ और ‘परम्परा की पहचान’ पुस्तक पर केंद्रित संवाद,निबंध संग्रह ‘मिठउआ’ के दूसरे संस्करण का हुआ लोकार्पण

वाराणसी, 07 फरवरी (Udaipur Kiran) । साहित्यकार अष्टभुजा शुक्ला ने कहा कि सीता की खोज बहुत संप्रेष्य शीर्षक है। आज जब सीता विस्मृत हो रही हैं। पुरुष वर्चस्व के समय में सीता की खोज करना उनके सर्जन का बड़ा उदाहरण है। अष्टभुजा शुक्ल शुक्रवार को संस्कृतिकर्मी प्रो. अवधेश प्रधान की दो महत्वपूर्ण पुस्तकों ‘सीता की खोज’ और ‘परम्परा की पहचान’ पर केंद्रित संवाद को सम्बोधित कर रहे थे।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय सामाजिक विज्ञान संकाय के महिला अध्ययन एवं विकास केन्द्र के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में अष्टभुजा शुक्ल के निबंध संग्रह ‘मिठउआ’ के दूसरे संस्करण का लोकार्पण भी किया गया। इस दौरान अष्टभुजा शुक्ल ने कहा कि परम्परा से होते हुए 21 वीं शताब्दी की सीता की खोज एक पुनर्नवा खोज है। सीता की खोज किताब आधुनिकता बनाम परंपरा को हमारे सामने रखती है। पुरुष और स्त्री के बाइनरी में जिससे ये सृष्टि सुंदर बनती है उसी सांस्कृतिक धारा और प्रवाह के क्रम में सीता की खोज हमारे लिए परंपरा की पहचान है। पुस्तक के लेखक प्रो. अवधेश प्रधान ने कहा कि लोकतत्वों में सीता की खोज सांस्कृतिक पहचान के लिए बहुमूल्य सामग्री है। हमें क्लासिक साहित्य के भीतर जो सीता है उसका अध्ययन करना है। श्रवण परम्परा में सीता की कथा टूटी हुई है।

प्राचीन अध्यात्म रामायण के बाद क्या परिवर्तन हुए इस पर काम करने की जरूरत है। विश्व में सबसे बड़ी संख्या धर्म को मानने वालों की है इसको साथ लेकर संवाद की आवश्यकता है। प्रो. अर्चना शर्मा ने कहा कि लेखक ने किताब में इतिहास और साहित्य का सुंदर समन्वय किया है। बिना किसी पक्ष विपक्ष के, बिना किसी आवाजाही के सीता के अद्भुत चरित्र की खोज की है। प्रो शरदिन्दु कुमार तिवारी ने कहा कि सीता की खोज किताब में सीता के उद्भव से लेकर उनके अग्नि प्रवेश, पृथ्वी प्रवेश तक का अंकन मिलता है। प्रो. नीरज खरे ने कहा कि शास्त्र के बरक्स लोक की स्थापना, लोक पक्ष की उदार दृष्टि, नवजागरण का विस्तार प्रधान की किताबों में है।

प्रो. प्रभाकर सिंह ने कहा कि परंपरा का मूल्यांकन नहीं होता, परम्परा की पहचान होती है। कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत प्रो. आशीष त्रिपाठी, अध्यक्षता सामाजिक विज्ञान संकाय की प्रमुख प्रो० बिंदा परांजपे, संचालन डॉ किंगसन पटेल ने किया। कार्यक्रम में वाचस्पति , प्रो. दीनबंधु तिवारी, प्रो. मनोज कुमार सिंह, प्रो. डी के ओझा, प्रो.कृष्ण मोहन पांडेय, डॉ महेंद्र प्रसाद कुशवाहा, डॉ मीनाक्षी झा आदि ने भी भागीदारी की।

—————

(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी

Most Popular

To Top