Uttar Pradesh

सब जग होरी ब्रज होरा का हुआ बंसत पंचमी से आगाज

फाइल फाेटाे हाेली
आज बंसत पंचमी पर ठाकुरजी भक्ताें काे दर्शन देते हुए

ब्रजभूमि की लड्डू से लेकर लट्ठ, चप्पल, छड़ीमार होली है विश्व विख्यात

मथुरा, 03 फरवरी (Udaipur Kiran) । बसंत पंचमी के दिन से होली रंगोत्सव का पर्व पूरे 40 दिनों तक हर्षोल्लास के साथ ब्रज में खेला जाता है। अनेक रंगों के साथ बसंत पंचमी के दिन से होली का हांडा मंदिरों सहित अन्य चौराहा कॉलाेनियों में गढ़ जाता है और बाल स्वरूप के ठाकुर जी को गुलाल लगाया जाता है। पूरे जनपद के मंदिरों में होली के अनेक रंग लड्डूमार होली, लठ्ठमार होली, रंगों की होली, चप्पल मार होली के साथ फालैन की होली, छड़ी मार होली भी विश्व विख्यात है।

द्वारिकाधीश मंदिर पुजारी राकेश तिवारी, सीमा मोरवाल विद्वान, लोक गीतकार प्रशांत कुमार व इतिहासकार राजेश कुमार के अनुसार ब्रज में 40 दिनों तक रंगोत्सव के पर्व बसंत पंचमी के दिन से होली महोत्सव की शुरुआत हो जाती है और सभी मंदिरों में ठाकुर जी को गुलाल लगाया जाता है। साथ ही मंदिर परिसर में गुलाल उड़ाया जाता है। मंदिरों में होली का डांडा गढ़ जाता है। रसिया गीत के साथ समाज गायन भी होता है, कहीं लड्डूमार, लट्ठमार, चप्पल मार, फालैन की होली के बाद रंगों की होली, छड़ी मार होली खेली जाती है। मंदिरों के साथ संतों के आश्रम मे होली भव्यता के साथ खेली जाती है। कहते हैं सब जग होरी ब्रज होरा खेला जाता है।

वह बताते हैं कि छाता तहसील के फालैन गांव में प्राचीन परंपरा आज भी कायम है, फालैन में पांच गांव की एक ही विशाल होली रखी जाती है, जो 20 फीट चौड़ी 15 फीट ऊंचाई की होती है। सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण महिला यहां पूजा करने के लिए आती हैं। होलिका दहन के दिन मोनू पंडा होलिका की धधकती अंगारों के बीच नंगे पांव निकलता है। गांव के प्राचीन भक्त पहलाद मंदिर परिसर में मोनू पंडा 40 दिन की कठोर तपस्या पर बैठे हुए हैं। प्रतिदिन मोनू 5 घंटे सुबह-शाम कठोर तपस्या करते हैं। उन्होंने बताया कि तपस्या करने के बाद केवल मोनू घर ही जाते हैं। तपस्या के अनुरूप इधर उधर जाना प्रतिबंधित होता है। उन्होंने बताया राधा रानी की जन्मस्थली बरसाना में लड्डूमार होली भव्यता के साथ खेली जाती है, नंद गांव के ग्वाला कृष्ण रूपी भेष में बरसाना पहुंचते हैं। मंदिर में जाकर राधा रानी से होली खेलने के लिए निमंत्रण दिया जाता है। मंदिर सेवायतों की अनुमति मिलने के बाद होली का निमंत्रण स्वीकार कर लिया जाता है। श्रद्धालुओं को बूंदी के लड्डू लुटाए जाते हैं, जो लड्डूमार होली कहलाई जाती है, द्वापर युग से चली आ रही परंपरा आज भी कायम है। कृष्ण भगवान सर्वप्रथम बरसाना जब होली खेलने के लिए पहुंचे थे तो सैकड़ों की संख्या में गोपियों को देखकर घबरा गए और एक मंदिर में जाकर छुप गए थे, जब राधा कान्हा को ढूंढते हुए मंदिर में पहुंचीं तो देखा कान्हा छुपे हुए बैठे हैं। राधा ने कान्हा से कहा कि पहले आप ब्रज दूल्हा बनो फिर सभी गोपियां आपके साथ लट्ठमार होली खेलेंगी। तभी कान्हा का नाम ब्रज दूल्हा के नाम से विख्यात हुआ. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। ब्रज दूल्हा की अनुमति मिलने के बाद बरसाना में लट्ठमार होली शुरू होती है। जिला पर्यटन अधिकारी यादराम ने बताया कि हर साल 9 करोड़ से अधिक सैलानी यहां के मंदिरों के दर्शन करने के लिए आते हैं। होली पर 10 से 12 लाख श्रद्धालु और 20 हजार से अधिक विदेशी सैलानी होली देखने खेलने के लिए आते हैं। होलिका दहन के दिन शुभ मुहूर्त की लगन होने के बाद मंदिर परिसर के पास बने प्रहलाद कुंड में स्नान करने के बाद मोनू की बहन दूध की धार धरती पर गिरती है और मोनू वहां से होलिका की धड़कती अंगारों के बीच से नंगे पांव निकलता है।

मंदिरों में खेली जाएगी होली

2 फरवरी को मथुरा बरसाना के राधा रानी मंदिर में, 3 फरवरी (बसंत पंचमी) को वृंदावन बांके बिहारी मंदिर में, 28 फरवरी होली की प्रथम चौपाई राधा रानी मंदिर में, 7 मार्च बरसाना लड्डू मार होली में, 8 मार्च बरसाना में लठ्ठमार होली, 9 मार्च नन्द गांव में लठ्ठमार होली, 10 मार्च रंगभरनी होली, बांके बिहारी मंदिर और श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर में, 11 मार्च मथुरा द्वारकाधीश मंदिर में होली, 11 मार्च गोकुल रमणरेती आश्रम होली, 12 मार्च वृन्दावन बांके बिहारी मंदिर में होली, 12 मार्च चतुर्वेदी समाज का प्राचीन डोला, 13 मार्च को फालैन होली, 14 मार्च रंगों की होली देश भर में, 15 मार्च बलदेव का हुरंगा, 22 मार्च वृन्दावन में रंग की होली।

(Udaipur Kiran) / महेश कुमार

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