-कोर्ट ने माता पिता के साथ जेल में रह रहे बच्चों के कल्याण के लिए कई निर्देश जारी किए
प्रयागराज, 01 फरवरी (Udaipur Kiran) । जेल में अपने नाबालिग बेटे के साथ रह रही एक आरोपित मां की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जेल में बंद माता-पिता के साथ रह रहे बच्चों की सुरक्षा और कल्याण के सम्बंध में विभिन्न राज्य प्राधिकारियों को कई निर्देश जारी किए हैं। भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत शिक्षा के अधिकार और जीवन के अधिकार पर जोर देते हुए न्यायमूर्ति अजय भनोट ने कहा कि “जेल की दीवारें बच्चों के लिए अनुच्छेद 21 के लाभों की प्राप्ति में बाधा नहीं डाल सकतीं।“
गाजियाबाद की आवेदक रेखा हत्या मामले में जेल में बंद है। उसका 5 वर्षीय बेटा उसके जेल में रहने के बाद से ही उसके साथ जेल में रह रहा है। कोर्ट में यह तर्क दिया गया कि जेल में रहने के कारण भारत के संविधान के अनुच्छेद 21-ए और अन्य कानूनों के तहत बच्चे के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। आवेदक ने इस आधार पर जमानत मांगी कि इस तरह के कारावास से बच्चे का जीवन प्रभावित होगा।
जबकि राज्य के वकीलों ने प्रस्तुत किया कि राज्य जेल में बंद बच्चे और अन्य बच्चों के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करने और पर्याप्त सहायता प्रणाली बनाने के लिए सभी प्रयास कर रहा है। अदालत ने कहा कि वह अपने माता-पिता के कारावास के परिणामस्वरूप आश्रित बच्चों को होने वाली क्षति के प्रति अपनी आंखे बंद नहीं कर सकता है।
यद्यपि न्यायालय ने कहा कि अपने बच्चों की भलाई सुनिश्चित करना प्रत्येक माता-पिता का कर्तव्य है। लेकिन माता-पिता के कारण जेल में बंद बच्चों की उपेक्षा करना राज्य की विफलता है। कोर्ट ने कहा “जमानत क्षेत्राधिकार में न्याय का निष्पक्ष प्रशासन इस न्यायालय को यह सुनिश्चित करने का आदेश देता है कि माता-पिता (इस मामले में मां) की जमानत याचिका खारिज होने के परिणाम स्वरूप बच्चे को होने वाले प्रतिकूल परिणामों को कम किया जाए और जेलों में रहने वाले कैदियों के नाबालिग बच्चों के अधिकारों की रक्षा की जाए।“
अन्य बातों के साथ-साथ, न्यायालय ने उत्तर प्रदेश जेल मैनुअल, 2022 के नियम 339 (एफ) के साथ बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 और भारत के संविधान के अनुच्छेद 21-ए का हवाला देते हुए कहा कि जिन बच्चों के माता-पिता जेल में हैं, उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति भनोट ने कहा कि जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव को कैदियों को उनके बच्चों के शिक्षा के अधिकार के बारे में शिक्षित करना चाहिए।
यह देखते हुए कि प्रत्येक बच्चा अलग होता है और उसकी ज़रूरतें भी अलग हो सकती हैं, न्यायालय ने कहा कि प्रत्येक बच्चे की क्षमताओं के पोषण के लिए, उनकी ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए अलग और व्यक्तिगत देखभाल योजनाएं तैयार की जा सकती हैं।
बच्चों के विकास के लिए न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह ऐसे बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, तंदुरुस्ती और समग्र विकास के बारे में संरचित कार्यक्रम बनाए ताकि उन्हें जेल के किसी भी नकारात्मक प्रभाव से बचाया जा सके। अन्य बातों के साथ-साथ, न्यायालय ने निर्देश दिया कि बच्चों को अन्य कैदियों के संपर्क से बचने के लिए संरक्षित किया जाना चाहिए और उन्हें एक अलग क्षेत्र में रखा जाना चाहिए।
न्यायालय ने बच्चों के शारीरिक, रचनात्मक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक विकास के लिए कार्यक्रमों के विकास के बारे में निर्देश जारी किए। कोर्ट ने कहा कि “राज्य सरकार को आवश्यकता पड़ने पर गतिविधियों और सहायता प्रणालियों की सूची बढ़ाने की छूट है। कानून, जेल, शिक्षा, चिकित्सा और स्वास्थ्य मंत्रालयों/विभागों और राज्य के किसी भी अन्य विभाग सहित अन्य मंत्रालय और प्राधिकरण, जहां भी आवश्यक हो, महिला और बाल विकास विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार के साथ पूर्ण सहयोग करेंगे।“
इसके अलावा, न्यायालय ने जेल अधिकारियों को निर्देश दिया कि जैसे ही बच्चे को आरोपी माता-पिता के साथ जेल में लाया जाए, बाल कल्याण समिति के साथ संवाद सुनिश्चित किया जाए। यह निर्देश दिया गया कि बच्चे को माता-पिता के साथ रखने की जगह और अन्य कैदियों के बीच बैरिकेडिंग होनी चाहिए ताकि कैदियों और बच्चे के बीच सम्पर्क से बचा जा सके।
इसके अलावा यह भी निर्देश दिया गया कि बच्चे को प्री स्कूल, किंडरगार्टन, प्लेस्कूल, प्राइमरी स्कूल में भेजा जाए। जैसा भी मामला हो, जो जेल परिसर के बाहर स्थित हो। जेल अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे खेल के मैदान, क्रेच और अन्य क्षेत्र उपलब्ध कराएं जो बच्चे के रचनात्मक विकास में मदद कर सकें।
बाल कल्याण समिति और जिला परिवीक्षा अधिकारियों को प्रत्येक बच्चे के समग्र विकास के लिए व्यक्तिगत योजनाएं बनाने के निर्देश दिए गए हैं। साथ ही यह भी निर्देश दिया गया है कि वे बच्चे को जेल के नकारात्मक प्रभावों से कैसे बचाया जाए, इसकी भी योजना बनाएं। न्यायालय ने इस बात पर गौर करते हुए कि प्रमुख सचिव (महिला एवं बाल विकास) उत्तर प्रदेश सरकार, लखनऊ के हलफनामे में राज्य के विभिन्न विभागों के बीच खराब समन्वय दिखाया गया है, उस पर कहा कि “विभिन्न राज्य विभागों के बीच समन्वय और सहयोग की कमी कानून के कार्यान्वयन में बाधा डाल रही है और जेलों में बच्चों के अधिकारों की प्राप्ति में देरी कर रही है। यह स्थिति लंबे समय तक नहीं चल सकती और इसे तुरंत और स्पष्ट रूप से संबोधित किया जाना चाहिए।“
तदनुसार, न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वे न्यायालय के निर्देशों को क्रियान्वित करने के लिए सभी सम्बंधित राज्य पदाधिकारियों को बुलाएं। यह देखते हुए कि याची अपने सौतेले बच्चे की हत्या में मुख्य आरोपी है, अदालत ने उसकी जमानत खारिज कर दी। हालांकि, ट्रायल कोर्ट को आवेदक के ट्रायल की सुनवाई में तेजी लाने का निर्देश दिया है।
—————
(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे