जम्मू 25 जनवरी (Udaipur Kiran) । गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में कानूनी शोध में शामिल पंजीकृत संगठन रिसर्च एंड एडवोकेसी ग्रुप ने शनिवार को जिला न्यायालय परिसर जम्मू में भारतीय समाज के संदर्भ में संवैधानिक नैतिकता बनाम सार्वजनिक नैतिकता विषय पर एक कार्यक्रम आयोजित किया। कार्यक्रम में आरएएजी के संयोजक एडवोकेट दीपक शर्मा के अलावा बड़ी संख्या में वकीलों ने भी भाग लिया जिनमें एडवोकेट दीवाकर शर्मा उप महाधिवक्ता, एडवोकेट करण पाराशर, एडवोकेट राजन चौधरी, एडवोकेट नाजुक कलसोत्रा, एडवोकेट निधि शर्मा, एडवोकेट माधवी, एडवोकेट आदित्य रैना, एडवोकेट हर्ष दुबे व अन्य शामिल थे।
प्रतिभागियों का परिचय देते हुए और कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए आरएएजी के संयोजक एडवोकेट दीपक शर्मा ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि हालांकि संविधान के भाग तीन में नैतिकता का उल्लेख है जो कुछ मौलिक अधिकारों को निरपेक्ष बनने से रोकता है लेकिन भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति के रूप में संवैधानिक नैतिकता का कोई उल्लेख नहीं है। इस अवधारणा ने बहुत महत्व प्राप्त कर लिया है और हाल ही में सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा कुछ ऐतिहासिक निर्णयों में अभिव्यक्ति के रूप में इसके उपयोग के बाद अकादमिक कानूनी बहस को जन्म दिया हैए जिसमें सबरीमाला मामला शामिल है जिसमें सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी गई और नवतेज सिंह जौहर मामले में सर्वाेच्च न्यायालय ने सहमति से वयस्कों के बीच समलैंगिक संबंधों को अपराध से मुक्त कर दिया। लेकिन न्यायालय समलैंगिक विवाह मामले में संवैधानिक नैतिकता के ऐसे सिद्धांत को लागू करने में विफल रहा।
उन्होंने आगे जोर देकर कहा कि संवैधानिक नैतिकता कानूनी प्रत्यक्षवाद का पहलू है और कई बार जब यह सार्वजनिक नैतिकता के साथ टकराव में आती है तो यह इस स्थिति में प्रवेश करती है कि क्या कानून समाज में नैतिकता लाता है या यह समाज की नैतिकता है जो कानून लाती है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि न्यायालयों को संवैधानिक नैतिकता की व्याख्या सार्वजनिक नैतिकता के साथ सामंजस्यपूर्ण तरीके से करनी चाहिए न कि एक दूसरे पर हावी होने कीए क्योंकि सार्वजनिक नैतिकता समाज के दीर्घकालिक अनुभवों, विश्वासों और मूल्यों का परिणाम है अन्यथा यह थोपी गई नैतिकता बन सकती है।
उप महाधिवक्ता दीवाकर शर्मा ने इस बात पर जोर दिया कि संवैधानिक नैतिकता की अवधारणा अत्यधिक व्यक्तिपरक है और इसे सावधानी से लागू किया जाना चाहिए क्योंकि इसका उपयोग व्यक्ति या संस्था के दृष्टिकोण के आधार पर विभिन्न कार्यों और निर्णयों को सही ठहराने के लिए किया जा सकता है।
(Udaipur Kiran) / मोनिका रानी