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बलात्कार मामले में पीड़िता के बयान को हमेशा पूरा सच नहीं माना जा सकता : हाईकोर्ट

साकेंतिक फोटो

-आरोपित याची की जमानत मंजूर

प्रयागराज, 16 जनवरी (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि बलात्कार के मामले में पीड़िता के बयान को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, लेकिन हमेशा उसे ही पूरा सच नहीं माना जा सकता।

हाईकोर्ट आरोपी द्वारा सीआरपीसी की धारा 439 के तहत दाखिल जमानत आवेदन पर विचार कर रही थी, जिस पर धारा 376 (2) एन, 342, 452, 406, 504, 506, 323 आईपीसी और धारा 67 आईटी अधिनियम के तहत थाना विशारतगंज बरेली में आरोप लगाए गए थे।

न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने याची अभिषेक भारद्वाज की जमानत मंजूर करते हुए कहा, “रिकॉर्ड से पता चलता है कि पीड़िता का आवेदक के प्रति झुकाव था और वह स्वेच्छा से उसके साथ गई थी। आवेदक के प्रति अपने प्यार और जुनून के कारण पीड़िता ने यौन सम्बंध बनाने के लिए सहमति व्यक्त की। बलात्कार के मामले में निःसंदेह पीड़िता के बयान को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, लेकिन साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि आजकल यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि सभी मामलों में पीड़िता हमेशा पूरी कहानी सच-सच बताएगी“।

मामले के अनुसार पीड़िता ने याची व चार अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराई। जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ आरोप लगाया कि उसकी शादी पांच वर्ष पूर्व हुई थी। आवेदक उसके घर आता-जाता था। इसी बीच आवेदक ने उसे अपने कार्यालय में नौकरी दिलाने का झांसा दिया, जहां वह काम करने लगी। आवेदक ने पीड़िता से कहा कि वह उसकी सरकारी नौकरी लगवा देगा और पांच लाख रुपये के सोने के जेवरात ले लिए तथा नौकरी का झांसा देकर कृष्णा रेजीडेंसी होटल में ले जाकर उसके साथ जबरन दुष्कर्म किया। पीड़िता द्वारा विरोध करने पर उसने उससे शादी करने का वादा किया।

इसके बाद नौकरी का झांसा देकर वह उसे कई बार लखनऊ स्थित होटल ले गया और वहां उसके साथ दुराचार किया। उसने करगैना स्थित अपने कार्यालय में भी उसके साथ दुराचार किया। आवेदक के कहने पर पीड़िता अपने मायके में रहने लगी। आवेदक ने अपने विशारतगंज स्थित कार्यालय में भी उसके साथ शारीरिक शोषण किया। इसके बाद पीड़िता अपने जेवरात वापस लेने आवेदक के घर गई। उसे बंधक बना लिया, मारा-पीटा तथा कहा कि जेवरात भूल जाओ, नहीं तो जान से मार देंगे। जब उसने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से शिकायत की तो सम्बंधित थाने की पुलिस समझौता करने का दबाव बना रही है।

याची का कहना था कि पीड़िता एक विवाहित महिला है और आवेदक उसे लंबे समय से जानता है तथा वह पीड़िता के घर आता-जाता था। यह दलील दी गई कि विवाहित होने के बावजूद पीड़िता का आवेदक के साथ विवाहेतर सम्बंध था तथा यह बलात्कार का मामला नहीं, बल्कि संबंधित पक्षों के बीच सहमति से सम्बंध का मामला था। उन्होंने पीड़िता और आवेदक के बीच विभिन्न चैट का हवाला देते हुए यह दर्शाया कि पीड़िता स्वेच्छा से और आवेदक के प्रति गहरी चिंता और झुकाव रखती थी।

यह भी दलील दी गई कि जब पीड़िता के पति और परिवार के अन्य सदस्यों को आवेदक के साथ पीड़िता के संबंध के बारे में पता चला, तो पीड़िता ने अपनी चमड़ी बचाने के लिए झूठी और मनगढ़ंत कहानियों पर डेढ़ साल की देरी से प्राथमिकी दर्ज कराई। यह भी दलील दी गई कि चूंकि पीड़िता पहले से ही विवाहित महिला है, इसलिए आवेदक की ओर से पीड़िता से शादी का वादा करने का कोई सवाल ही नहीं उठता। जहां तक पीड़िता की तस्वीरें वायरल करने के आरोप का सवाल है, तो दलील दी गई कि उक्त तस्वीरों में कोई अश्लीलता नहीं है।

न्यायालय ने माना कि अभियुक्त के प्रति पीड़िता के झुकाव को साबित करने के लिए रिकार्ड में सामग्री उपलब्ध है, इसलिए इस मामले में उसके बयान पर विश्वास नहीं किया जा सकता। तदनुसार आवेदन स्वीकार कर लिया गया।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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