कानपुर, 16 जनवरी (Udaipur Kiran) । आलू फसल में पिछेती झुलसा रोग बेहद ही खतरनाक है। यदि यह रोग फसल को लग जाए, तो आलू का एक-एक पौधा नष्ट हो जाता है। देश के कई हिस्सों में यह रोग बहुत ही तेजी से फैल रहा है लेकिन गनीमत की बात यह है कि कानपुर और उसके आसपास के इलाकों में यह रोग अभी नहीं पहुंचा है। ऐसे में यदि समय पर ध्यान न दिया जाए तो किसानों को भारी नुस्कान का सामना करना पड़ सकता है। इस रोग से बचने के लिए गुरुवार को सीएसए के वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार सिंह ने एडवाइजरी जारी की है।
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) द्वारा संचालित दिलीप नगर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक एवं केंद्र के प्रभारी डॉ. अजय कुमार सिंह ने आलू फसल में पिछेती झुलसा रोग के प्रबंधन हेतु एडवाइजरी जारी की है। वैज्ञानिकों का दावा है कि मौसम की अनुकूलता के आधार पर जनपद में आलू की फसल में पिछेती झुलसा रोग आने की प्रबल संभावना है। डॉ सिंह ने बताया कि जनपद के विभिन्न क्षेत्रों में आलू की फसल उगाई जाती है। यहां का आलू सब्जी एवं चिप्स आदि हेतु प्रयोग होता है। ऐसे में यहां पर यदि बीमारी आलू फसल में आई तो किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। उन्होंने बताया कि जिन क्षेत्रों में अभी झुलसा रोग नहीं आया है, वहां पर पहले ही मेंकोजेब, प्रोपीनेजब, कलोरोथेलोनील दवा का .25 प्रतिशत प्रति हजार लीटर की दर से छिड़काव तुरंत करें। इसके अलावा जिन क्षेत्रों में यह बीमारी आलू में लग चुकी है उनमें साइमोक्सेनिल, मेंकोजेब या फिनेमिडोन मैंकोजेब दवा को 3.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें, उन्होंने सलाह दी है कि घोल में स्टिकर अवश्य डालें। जिससे दवा पत्तियों पर चिपक जाए।उन्होंने किसानों से कहा है कि वह इस प्रक्रिया को 10 दिन में दोहरा सकते हैं। डॉ सिंह ने किसानों को एडवाइजरी जारी करते हुए कहा है कि वह फसलों में जरूरत से अधिक कीटनाशक का उपयोग न करें।
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(Udaipur Kiran) / Rohit Kashyap