—जुलूस में नारे हैदरी या अली या अली की सदाएं गूंजती रही, रौजे की जियारत
वाराणसी,14 जनवरी (Udaipur Kiran) । इमाम हजरत अली की जयंती (मौला अली डे) पर मंगलवार को शिया समुदाय ने टाउनहाल मैदागिन से जुलूस निकाला। जुलूस बुलानाला, नीचीबाग, चौक, दालमंडी, नई सड़क, काली महाल, पितरकुंडा होते हुए लल्लापुरा स्थित दरगाह फातमान पहुंचकर समाप्त हुआ। जुलूस में नारे हैदरी या अली या अली की सदाएं गूंजती रही। रास्ते भर शिया समाज के लोगों ने जुलूस का स्वागत किया। जुलूस में शामिल लोगों के लिए जलपान की व्यवस्था जगह-जगह की गई थी। दरगाह में दुआख्वानी व जोहर की नमाज के बाद शिया लोगों ने हजरत अली के रौजे की जियारत की।
शाम को दरगाहे फातमान स्थित सभागार में सर्व धर्म प्रार्थना सभा होगी। सभा में श्री संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वम्भर नाथ मिश्र, विशप यूजीन जोसफ, मैत्री भवन के निदेशक फादर फिलिप्स, गुरुद्वारा नीची बाग से भाई धर्मवीर सिंह, तिब्बती उच्च शिक्षा संस्थान से प्रो. रमेश चंद्र नेगी शिरकत करेंगे। इस अवसर पर शिया समाज में शिक्षा के क्षेत्र में समाज सेवा के रूप में जो लोग कार्य कर रहे हैं, उन्हें सम्मानित किया जाएगा। हजरत अली समिति के हाजी फरमान हैदर ने बताया कि हजरत अली पैगम्बर हजरत मोहम्मद सल्ल के दामाद और चौथे खलीफा हैं। 1468 साल पहले उर्दू कैलेंडर के अनुसार 13 रजब को मक्का में उनका जन्म हुआ। अली सिर्फ मुसलमानों या शियाओं के नहीं हैं। हमारे लिए हजरत अली वैसे ही हैं जैसे भगवान राम और कृष्ण। उन्होंने बताया कि हजरत अली की जयंती पर शिया समाज में जश्न का माहौल है। जगह-जगह महफिल मीलाद कार्यक्रम हुआ। हजरत अली की शान में कसीदे पढ़े गए। बताया गया कि ये वो अजीम शख्सियत है जिन्होंने अपने दौर—ए-हुकूमत में इंसाफ की हुकूमत की। किसी पर जुल्म नहीं किया। जब अरब में बादशाह जुल्म करने के लिए जाने जाते थे। उस वक्त एक ऐसी मिसाल कायम की जो कयामत तक लोगों के लिए मिसाल है। उन्होंने कभी किसी मसले का हल जंग या तलवार से नहीं निकाला।
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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी