जोधपुर, 11 जनवरी (Udaipur Kiran) । राजस्थान उच्च न्यायालय की न्यायाधीश डॉ नूपुर भाटी ने बीमा कंपनी की रिट याचिका खारिज करते हुए कहा है कि बैंक द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से जारी सुरक्षा निर्देशों की पालना नहीं करने के बावजूद बैंक कर्मचारी की लापरवाही, धोखाधड़ी तथा कपटपूर्ण कार्रवाई से मार्गस्थ धन की चोरी की दावा राशि अदा करने के वास्ते बीमा कंपनी जवाबदेह और जिम्मेदार है। स्थाई लोक अदालत के आदेश की पालना में अब नेशनल इंश्योरेंस कंपनी को दावा राशि 14 लाख 50 हजार रुपये मय ब्याज और 25 हजार रुपये हर्जाना अदा करना होगा।
नेशनल इंश्योरेंस कंपनी ने रिट याचिका दायर कर कहा कि स्थाई लोक अदालत, चित्तौडग़ढ़ ने 9 अप्रैल 2024 को बड़ौदा राजस्थान क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक का परिवाद गलत मंजूर किया है, क्योंकि बैंक कर्मचारी जानकीलाल ने पुलिस में दर्ज प्रथम सूचना रपट में बताया कि वह कपासन शाखा से जब बैग में राशि ला रहा था तो बस स्टैंड पर गाय ने उसे गिरा दिया और बैग चोरी हो गया, जबकि बाद में पुलिस ने पाया कि बैग दुकान के बाहर कुर्सी पर वैसे ही रखने से चोरी हो गया। बैंक की ओर से बहस करते हुए अधिवक्ता अनिल भंडारी ने कहा कि बैंक द्वारा बीमा नवीकरण प्रस्तावना प्रपत्र और बीमा पॉलिसी के तहत किया गया स्थाई लोक अदालत का फैसला विधि सम्मत होने से रिट याचिका खारिज की जाएं।
राजस्थान उच्च न्यायालय की न्यायाधीश डॉ नूपुर भाटी ने बीमा कंपनी की रिट याचिका खारिज करते हुए कहा कि बैंक ने इस शर्त के साथ बीमा प्रस्तावना प्रपत्र भेजा था कि बैंक की शाखाओं में आवागमन का साधन नहीं होने से धनराशि बिना गनमैन के पैदल, मोटरसाइकिल या बस में जा सकती है और बीमा कंपनी ने बैंक द्वारा प्रेषित प्रीमियम स्वीकार कर जब एक बार पॉलिसी जारी कर दी तो नुकसान के समय यह नहीं कहा जा सकता कि धनराशि बॉक्स में चैन और ताला लगा कर नहीं ले जा कर बैग में रख कर ले जाई गई।
उन्होंने कहा कि बीमा कंपनी बीमा पॉलिसी की शर्तों से बाधित है और रिजर्व बैंक के दिशा निर्देश बीमा पॉलिसी संविदा से ऊपर नहीं है। उन्होंने कहा कि बीमा शर्त के मुताबिक बीस लाख से कम मार्गस्थ धन राशि की सुरक्षा वास्ते सशस्त्र गार्ड की आवश्यकता नहीं है और बीमा पॉलिसी के तहत बैंक कर्मचारी ने धोखाधड़ी, लापरवाही या कपटपूर्ण कार्रवाई की है तो भी बीमा कंपनी बीमा पॉलिसी संविदा के तहत दावा राशि अदा करने के वास्ते जवाबदेह और जिम्मेदार है और बैंक प्रबंधन ने कर्मचारी को गलत प्रथम सूचना रपट दर्ज करने वास्ते अपनी सहमति नहीं दी है इसलिए स्थाई लोक अदालत ने बैंक का परिवाद मंजूर करने में कोई गलती नहीं की है।
(Udaipur Kiran) / सतीश