
कोलकाता, 09 जनवरी (Udaipur Kiran) । डिवीसी द्वारा जल छोड़ने के विवाद पर दायर जनहित याचिका को लेकर कलकत्ता हाई कोर्ट ने कांग्रेस नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी को जमकर फटकार लगाई। गुरुवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने याचिका की स्वीकार्यता पर सवाल उठाते हुए अधीर को इसे वापस लेने की सलाह दी।
मामला मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम और न्यायमूर्ति हीरण्मय भट्टाचार्य की खंडपीठ के सामने सुनवाई के लिए आया। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने अधीर के वकील से कहा कि आपको पहले तथ्य जुटाने चाहिए थे। आपने सिर्फ अखबार के दो पन्नों को आधार बनाकर यह याचिका दायर कर दी। जल कितना संग्रहीत होता है ? डिवीसी जल कब और कैसे छोड़ता है ? प्रक्रिया क्या है ? इन तथ्यों का अभाव है।
खंडपीठ ने यह भी कहा कि अधीर रंजन चौधरी चार बार सांसद रह चुके हैं और प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष हैं। ऐसे में उन्हें यह समझ होना चाहिए कि काम कैसे होता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि अधीर को इस मामले में हाई कोर्ट की मदद की आवश्यकता नहीं है।
——————
डिवीसी जल विवाद और याचिका का उद्देश्य
सितंबर 2024 में अधीर रंजन चौधरी ने कलकत्ता हाई कोर्ट में डिवीसी द्वारा जल छोड़ने के मुद्दे पर जनहित याचिका दायर की थी। उनका कहना था कि वे यह जानना चाहते हैं कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनके दफ्तर में से कौन सही बोल रहा है।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बार-बार डिवीसी द्वारा जल छोड़ने के तरीके को राज्य में बाढ़ की स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहराया है। उनका आरोप है कि डिवीसी राज्य को बिना सूचित किए जल छोड़ता है, जिससे स्थिति और खराब हो जाती है। हालांकि, एक दस्तावेज़ से यह सामने आया था कि जिस दिन ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को डिवीसी के खिलाफ शिकायत करते हुए पत्र लिखा था, उसके तीन दिन पहले ही राज्य के आठ जिलों को बाढ़ की चेतावनी जारी की गई थी।
इस परिस्थिति को आधार बनाकर अधीर रंजन चौधरी ने सवाल उठाया कि ममता बनर्जी या उनका दफ्तर, कौन सही है। लेकिन हाई कोर्ट ने याचिका को कमजोर बताते हुए इसे वापस लेने की सलाह दी।
मुख्य न्यायाधीश ने अधीर के वकील से स्पष्ट रूप से कहा कि याचिका दायर करने से पहले पुख्ता तथ्य जुटाना जरूरी था। बिना ठोस जानकारी के केवल अखबार की खबरों पर याचिका का आधार बनाना न्यायालय के समय का दुरुपयोग है।
(Udaipur Kiran) / ओम पराशर
