Uttar Pradesh

एआई का सही दिशा में प्रयोग साबित हो सकता है वरदान: प्रोफेसर पूनम टंडन

वरदान साबित हो सकता है सही दिशा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग: प्रोफेसर पूनम टंडन*
वरदान साबित हो सकता है सही दिशा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग: प्रोफेसर पूनम टंडन*
वरदान साबित हो सकता है सही दिशा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग: प्रोफेसर पूनम टंडन*
वरदान साबित हो सकता है सही दिशा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग: प्रोफेसर पूनम टंडन*
वरदान साबित हो सकता है सही दिशा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग: प्रोफेसर पूनम टंडन*

गोरखपुर, 8 जनवरी (Udaipur Kiran) । दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग तथा महायोगी गुरु गोरखनाथ शोधपीठ के संयुक्त तत्वावधान में ‘दर्शन, संस्कृति एवं कृत्रिम बुद्धिमत्ता का अंतरसंबंध’ विषयक एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रोफेसर पूनम टंडन ने कहा कि हमारा समय और समाज तेजी से बदल रहा है। इसमें टेक्नोलॉजी की बहुत बड़ी भूमिका है। टेक्नोलॉजी हमारे आचार विचार व्यवहार और कई मायनों में सभ्यता को भी प्रभावित कर रही है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारे समय का एक बड़ा सच है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। जरूरत है तो इसे समझने की, मनुष्यता के हित में दिशा देने की। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सही दिशा में इस्तेमाल वरदान साबित हो सकता है। इससे जुड़ी कुछ चिंताएं भी हैं जिस पर आज के मुख्य अतिथि पैट्रिक कॉर्बेट अपना महत्वपूर्ण अध्ययन हमसे साझा करेंगे।

मुख्य अतिथि अमेरिका से पधारे न्यूयॉर्क सिटी प्रौद्योगिकी कॉलेज, न्यूयॉर्क सिटी विश्वविद्यालय के डॉ. पैट्रिक कॉर्बेट (निदेशक, व्यावसायिक एवं तकनीकी लेखन) ने कहा कि हमारा भविष्य आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित है। कुछ हद तक मौजूदा समय में भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने अपनी जगह बना ली है। इसे रोका नहीं जा सकता, इससे साझेदारी करना ही समझदारी है। हर चीज के दो पहलू होते हैं, एक अच्छा है तो दूसरा बुरा। यह हमारे दृष्टिकोण पर निर्भर करता है कि हम उसके किस पक्ष को ज्यादा तवज्जो देते हैं। इस संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का विवेकपूर्ण इस्तेमाल करना होगा। विवेकपूर्ण इस्तेमाल ही भविष्य की समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करेंगी।

दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर राजवंत राव ने कहा कि इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि जब-जब मनुष्य को अनियंत्रित शक्ति प्राप्त हुई है तब तब उसे संभालना मुश्किल हुआ है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर बात करते हुए हमें दो बिंदुओं पर निश्चित रूप से ध्यान देना होगा, पहला बिंदु यह है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विकास में स्टेट और कॉर्पोरेट दोनों रुचि ले रहे हैं, दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि पूंजीवादी दौर में मुनाफा सबसे बड़ा सच है। ऐसी स्थिति में केवल विवेक की आशा में तकनीकी को छोड़ देना और शुभता की अपेक्षा करना बहुत व्यावहारिक नहीं लगता है। भविष्य का हश्र तो भविष्य ही बता सकता है.

महायोगी गुरु गोरखनाथ शोधपीठ के निदेशक डॉक्टर कुशलनाथ मिश्र ने कहा कि हमें परंपरा और आधुनिकता दोनों पर पैनी नजर रखनी होगी। आधुनिकता ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तक की यात्रा लगभग कर ली है। परंपरा में स्थापित जो विवेक का मूल्य है वही हमें आधुनिकता की जटिलताओं में शायद रास्ता दिखा सके।

विशिष्ट अतिथि अंतर्राष्ट्रीय प्रकोष्ठ के डॉ रामवंत गुप्ता ने कहा कि यह हमारा सौभाग्य है कि अमेरिका से हमारे बीच आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के अध्येता पैट्रिक कॉर्बेट मौजूद हैं। उनका व्याख्यान निश्चय ही हमारा मार्ग प्रशस्त करेगा। उन्होंने जीव जगत, वनस्पति- जगत, औद्योगिक जगत, कृषि जगत आदि में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के बेहतर उपयोग और तत्संबंधित भविष्य की संभावनाओं को रेखांकित किया।

संगोष्ठी के संयोजक डॉ. संजय कुमार राम ने विषय प्रवर्तन किया। सत्र के अंत में महायोगी गुरु श्री गोरक्षनाथ शोधपीठ के उप निदेशक डॉ. कुशल नाथ मिश्र ने अतिथियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।

संगोष्ठी के द्वितीय सत्र के मुख्य वक्ता प्रो. प्रबुद्ध मिश्र, आचार्य, दर्शनशास्त्र विभाग, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक ने अपने उद्बोधन में दर्शन, संस्कृति एवं समकालीन समाज विषय पर केंद्रित व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने ज्ञान आधारित समाज और ज्ञान से रहित समाज के बीच उत्पन्न होने वाली खाइयों के प्रति सचेत किया। उन्होंने समय परिवर्तन के साथ परिस्थितियों में सामंजस्य और अनुकूलन स्थापित करने की क्षमता को मानव की विशेषता बताया. उनका आग्रह था कि अपनी इस विशेषता का उपयोग करते हुए मानव को जीवन के ज्ञानात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक प्रवृतियों के बीच संतुलन स्थापित करना चाहिए, क्योंकि यह मानव के समग्र विकास के लिए आवश्यक है।

इस सत्र की विशिष्ट वक्ता प्रो. सुनीता मुर्मू ने अपने उद्बोधन में दर्शन, संस्कृति एवं कृत्रिम बुद्धिमत्ता के संदर्भ में यह रेखांकित किया कि मनुष्य को केंद्र में रखकर तकनीक का उपयोग किया जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने कृत्रिम बुद्धिमत्ता के प्रयोग से उत्पन्न चुनौतियों के प्रति सतर्क किया।

समापन सत्र के मुख्य वक्ता डॉ. अवनीन्द्र द्विवेदी, वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उद्भव एवं विकास की विवेचना की। उन्होंने स्वास्थ्य देखभाल और बीमारियों के उपचार के साथ ही कोविड 19 से संबंधित वैश्विक महामारी तक में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की भूमिका को रेखांकित किया और उसके गुण-दोषों की समीक्षा की। संगोष्ठी के विशिष्ट वक्ता डॉ. आमोद कुमार राय ने अपने उद्बोधन में संगोष्ठी के विषय की महत्ता को रेखांकित करते हुए यह बताया कि यद्यपि कृत्रिम बुद्धिमत्ता का मानव जीवन में हस्तक्षेप उपयोगी है, किन्तु कुछ दृष्टियों से खतरनाक भी है। अतः हमें यह ध्यान देना होगा कि उसके नकारात्मक पक्ष का प्रभाव कम से कम पड़े ताकि जीवन और संस्कृति अक्षुण्ण रहे।

इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. अनुभूति दुबे ने यह बताया कि यद्यपि तकनीक और विज्ञान का उपयोग जीवन को बेहतर बनाने में महत्त्वपूर्ण होता है, लेकिन प्रश्न यह है कि उसके द्वारा जीवन के समक्ष आने वाली चुनौतियों का सामना कैसे जाए! इस पर विचार करना चाहिए। उन्होंने संज्ञानात्मक समस्याओं, मानसिक और शारीरिक समस्याओं, शिक्षणशास्त्र की समस्याओं आदि का समाधान कृत्रिम बुद्धिमत्ता के द्वारा अथवा उसके बिना कैसे हो इस हेतु मनुष्य को अभिभावकीय भूमिका का निर्वहन करना चाहिए।

अंत में संगोष्ठी के सह-संयोजक डॉ. संजीव विश्वकर्मा के द्वारा सभी अतिथियों, विषय-विशेषज्ञों, शिक्षकों, प्रतिभागियों, शोधार्थियों, कर्मचारियों, विद्यार्थियों और मीडिया कर्मियों के प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित की।

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(Udaipur Kiran) / प्रिंस पाण्डेय

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