Jammu & Kashmir

साहिब बंदगी के अखनूर आश्रम के 32वें स्थापना दिवस पर सत्संग व भंडारे का आयोजन किया

साहिब बंदगी के अखनूर आश्रम के 32वें स्थापना दिवस पर सत्संग व भंडारे का आयोजन किया

जम्मू, 25 दिसंबर (Udaipur Kiran) । 25 दिसंबर 1992 को साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने अखनूर आश्रम की नींव रखी थी। बुधवार को 32वें स्थापना दिवस के पावन अवसर पर विशाल सत्संग व भंडारे का आयोजन किया गया। प्रवचनों की अमृत वर्षा से संगत को निहाल करते हुए साहिब जी ने कहा कि विनती में बड़ी शक्ति होती है। साहिब स्वयं धर्मदास से कह रहे हैं कि मैं याचना सुनकर नहीं रुक सकता। तुम्हें प्रतिदिन प्रार्थना करनी चाहिए। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि तुम्हारे मुख से निकला हुआ वचन कभी समाप्त नहीं होता।

जब तक ब्रह्मांड रहेगा, वह वचन रहेगा। इसीलिए वैज्ञानिक खोज पर लगे हैं। वे गीता में वासुदेव श्री कृष्ण के उपदेशों की खोज कर रहे हैं। उन्होंने कुछ श्लोक भी खोज लिए हैं। लेकिन वे इसे सिद्ध नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि उनके पास वासुदेव कृष्ण की वाणी की कापी नहीं है। इसका प्रमाण मौजूद है। जब ओसामा बिन लादेन ने पेशावर के एक अस्पताल में कुछ कहा तो अमेरिकी वैज्ञानिकों ने उसे कैद कर लिया। जब तक वे वहां पहुंचे, ओसामा भाग चुका था। इसका कारण यह था कि उनके पास ओसामा बिन लादेन की आवाज की नकल थी। उन्होंने ऐसे उपकरण लगाए थे कि वे उसे दुनिया के किसी भी कोने में बोलते हुए पकड़ लेंगे। जब किसी व्यक्ति के मुंह से निकले हुए शब्द नष्ट नहीं होते हैं, तो यह इस बात का प्रमाण है कि आपकी प्रार्थना नष्ट नहीं हुई है। वे ईश्वर तक पहुंचती हैं। वैज्ञानिकों ने यह साबित कर दिया है।

इसीलिए साहब कह रहे हैं कि मैं प्रार्थना सुनने से खुद को रोक नहीं सकता। गोस्वामी जी ने विनय वीतिका में भी प्रार्थना भरी है। गोस्वामी जी अकबर के काल में हुए। कबीर साहब सिकंदर लोधी के काल में हुए। लगभग 200 साल पहले। इसीलिए उन्हें आदि कवि कहा जाता है। दोहे, छंद, सोरठे, चोपाइयां आदि सभी कबीर साहब की देन हैं। कवि रहीम को मथोगे तो कबीर साहब भीतर से निकल आएंगे। आरती का अर्थ है दीन की प्रार्थना। हे प्रभु, मैं माया में पड़ गया हूं। मैं अपने बल से नहीं बच सकता। आप ही दया करो और दया करके अपने सेवक को मुक्त करो। ऐसी प्रार्थना है। हे प्रभु, आपके समान क्षमाशील कोई नहीं है और मेरे समान कुटिल कोई नहीं है। रास्ते में करोड़ों प्रलय हैं। मैं स्वयं आपके पास नहीं आ पाऊँगा। आप ही दया करें।

आप स्वयं देखें कि नाम प्राप्त करने के बाद आपका मृत्यु का भय समाप्त हो गया है। आपको विश्वास है कि मैं पार हो जाऊँगा। जैसे शरीर के लिए भोजन आवश्यक है, वैसे ही हृदय की शुद्धि के लिए सुमिरन आवश्यक है। जप, तप, संयम, साधना सभी सुमिरन के अंतर्गत आते हैं। आप नाम के अलावा जो कुछ भी सोच रहे हैं, वह सब समय का खेल है। इसलिए सुमिरन को नहीं भूलना।

(Udaipur Kiran) / राहुल शर्मा

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