जयपुर, 24 दिसंबर (Udaipur Kiran) । राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने मातृभाषा की संविधानिक स्थिति का जिक्र करते हुए भाषा के मूल्य बोध को बताया। उन्होंने कहा कि विकसित भारत की यात्रा केवल आर्थिक विकास तक सीमित नहीं हो सकती। इसे वास्तविक रूप में सफल बनाने के लिए हमें सामाजिक समावेश और मातृभाषा गौरव को अपने राष्ट्र निर्माण के मूल आधार के रूप में स्वीकार करना होगा। एक सशक्त राष्ट्र वही बन सकता है, जहां पर मातृभाषा के प्रति उचित सम्मान हो। देवनानी विकसित भारत के लिए मातृभाषा गौरव विषय पर परिचर्चा काे संबाेधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि कोई भी देश तब तक विकास नहीं कर सकता जब तक की उसकी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुद की भाषा न हो। भाषा किसी भी देश की संस्कृति और सभ्यता की संवाहक होती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भी भारत के शैक्षणिक परिदृश्य में भारतीय भाषाओं को पहचानने, स्वीकार करने और उनका प्रसार करने के लिए पूर्ण प्रतिबद्ध दिखाई देती है। बालक की प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए, क्योंकि मातृभाषा में शिक्षा वैज्ञानिक और शास्त्र-सम्मत होती है, जो बालक के समग्र विकास के लिए सबसे उपयुक्त है।
सामाजिक अपवर्जन एवं समावेशी नीति अध्ययन केंद्र, राजस्थान विश्वविद्यालय एवं विद्या भारती के संयुक्त तत्वावधान में विकसित भारत के लिए मातृभाषा गौरव विषय पर परिचर्चा का आयोजन मंगलवार को राजस्थान विश्वविद्यालय के मानविकी सभागार में आयोजित किया गया। परिचर्चा की प्रस्तावना माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान के पूर्व अध्यक्ष प्रो. भरतराम कुम्हार ने रखी। अध्यक्षता प्रो. अल्पना कटेजा कुलपति राजस्थान विश्वविद्यालय ने की। मुख्य वक्ता संगठन मंत्री विधा भारती शिवप्रसाद ने बताया कि मातृभाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं है, बल्कि यह हमारी सोच, संस्कृति और चेतना की आधारशिला है। विशिष्ट अतिथि जयपुर जिला कलेक्टर डॉ जितेंद्र कुमार सोनी ने अपने उद्बोधन में राजस्थानी भाषा के महत्व पर प्रकाश डाला। सी.एस.एस.ई.आई.पी के निदेशक एवं आयोजन सचिव रोहित कुमार जैन ने बताया कि परिचर्चा में मातृभाषा गौरव पुस्तिका का विमोचन किया गया।कार्यक्रम में बड़ी संख्या में भाषा विशेषज्ञ , शिक्षक , शोधार्थी व अभिभावक शामिल हुए।
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(Udaipur Kiran) / रोहित