Uttar Pradesh

आरएसएस के शताब्दी वर्ष में समाज में पञ्च संकल्प को लाना स्वयंसेवक का दायित्व

माधव शाखा के वार्षिक उत्सव में वक्ता: फोटो बच्चा गुप्ता
माधव शाखा के वार्षिक उत्सव में वक्ता: फोटो बच्चा गुप्ता

—माधव शाखा के वार्षिक उत्सव में बोले वरिष्ठ प्रचारक दीनदयाल, विघटित हो रहे परिवारों ​में एकता पर जोर

वाराणसी,22 दिसम्बर (Udaipur Kiran) । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) 2025 में अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश करेगा। इस अवसर पर कुटुंब प्रबोधन,नागरिक कर्तव्य,सामाजिक समरसता, स्व भाव का जागरण,पर्यावरण जैसे विषयों को आत्मसात कर स्वयंसेवकों को समाज निर्माण के कार्य में अग्रणी भूमिका निभानी है। यह उद्गार संघ के काशी प्रांत संपर्क प्रमुख दीनदयाल के है।

रविवार को संघ के काशी दक्षिण भाग, गंगानगर के माधव मार्केट लंका स्थित माधव शाखा के वार्षिक उत्सव में संपर्क प्रमुख दीनदयाल स्वयंसेवकों को सम्बोधित कर रहे थे। बतौर मुख्य वक्ता संपर्क प्रमुख ने कहा कि संघ के सरसंघचालक विगत वर्षों से जिन पांच संकल्पों द्वारा समाज निर्माण की बात करते हैं, उन्हें सर्वप्रथम स्वयंसेवकों को अपने आचरण में लाना होगा । स्वयंसेवकों के भाषा, भूषा,भजन, भोजन,भवन एवं भ्रमण से सनातन के आदर्शों का दर्शन होना चाहिए। उन्होंने कहा कि विघटित हो रहे परिवारों के लिए आवश्यक है कि प्राचीन परिवार प्रणाली को पुनर्जीवित किया जाए। इसी प्रकार प्रत्येक भारतीय नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह वर्ष के 365 दिवस नागरिक कर्तव्यों को अपने आचरण में समाहित करें। जिस प्रकार संघ में जाति प्रथा का प्रयोग नहीं है। उसी प्रयोग को समाज में भी आचरण में लाने पर सामाजिक समरसता बढ़ेगी। संघ के स्वयंसेवक सर्वप्रथम स्वयं स्वदेशी उत्पादों का प्रयोग अपने आचरण में लाएं। उत्सव में मुख्य अतिथि काशी हिंदू विश्वविद्यालय मेडिसिन विभाग के डॉक्टर आई.एस. गंभीर ने कहा कि हमारी वर्तमान चिकित्सा व्यवस्था अधिक उन्नत हो गई है। भारत में कम दामों पर चिकित्सा उपलब्ध होने के कारण यहां मेडिकल पर्यटन भी बढ़ा है। वार्षिकोत्सव की अध्यक्षता धर्म संघ शिक्षा मंडल के सचिव जगजीतन पांडेय ने की। वार्षिक उत्सव के प्रारंभ में संघ के गुरु भगवा ध्वज को लगाया गया । खेल, योग, दंड प्रयोग, नियुद्ध जैसे विभिन्न प्रकार के शारीरिक कार्यक्रमों का प्रदर्शन किया गया। समारोह में सभी स्वयंसेवक संघ के गणवेश में उपस्थित थे।

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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी

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