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शिक्षा कोई पेशा नहीं बल्कि एक व्रत है, एक सेवा है :  डॉ. मोहन भागवत

शिक्षा के लिए व्यवस्था एक परिसंपत्ति होनी चाहिए न कि बाधा: सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत

मुंबई, 20 दिसंबर (Udaipur Kiran) । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि शिक्षा व्यवस्था का स्वरूप न केवल नियामक होना चाहिए बल्कि शिक्षा के अनुकूल होना चाहिए। मोहन भागवत ने कहा कि साक्षरता और शिक्षा में अंतर है। शिक्षा कोई पेशा नहीं वरन एक व्रत है, इसका पालन करना जरूरी है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. भागवत शुक्रवार को पुणे में पाषाण इलाके में लोकसेवा ई स्कूल के नये भवन के उद्घाटन के मौके पर बोल रहे थे। इस अवसर पर पूर्व चार्टर्ड अधिकारी अविनाश धर्माधिकारी, शास्त्रीय संगीत गायक महेश काले, भारतीय जैन एसोसिएशन के संस्थापक शांतिलाल मुत्था, कॉसमॉस बैंक के अध्यक्ष मिलिंद काले, उद्यमी पुनीत बालन, लोकसेवा प्रतिष्ठान के निदेशक एडवोकेट वैदिक पेगुडे, पूर्व निदेशक निवेदिता मडकिकर और अन्य उपस्थित थे।

इस अवसर पर मोहन भागवत ने कहा कि लोगों को शिक्षा का विषय चौखट में नहीं अटकना चाहिए, यह समाज पर आधारित होना चाहिए। इसके लिए समाज को ध्यान रखना चाहिए। भागवत ने कहा कि साक्षरता और शिक्षा में अंतर है। अपना पेट भरना शिक्षा नहीं है। इंसान बनने के लिए शिक्षा की जरूरत होती है। इंसान बनाने की प्रक्रिया ही शिक्षा है। इसलिए शिक्षा कोई पेशा नहीं बल्कि एक व्रत है, एक सेवा है। सरसंघचालक ने आशा व्यक्त की कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रभावी कार्यान्वयन से उस तरह का व्यक्ति तैयार होगा जैसा देश चाहता है।

इस मौके पर शांतिलाल मुथा ने कहा कि आजादी के बाद पहली बार सबसे अच्छी शिक्षा नीति बनाई गई है। यह एक नए भारत का निर्माण करेगी। हालांकि नीति अच्छी है लेकिन इसे प्रभावी ढंग से लागू करने की जरूरत है। पश्चिमी संस्कृति के आक्रमण के कारण, मूल्य शिक्षा और परिवार व्यवस्था के सामने कई चुनौतियां हैं। कार्यक्रम की शुरुआत में नेताजी सुभाष चंद्र बोस मिलिट्री स्कूल के छात्रों ने अनुशासित तरीके से मार्च करते हुए गणमान्य अतिथियों का अभिनंदन किया।

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(Udaipur Kiran) यादव

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