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रक्षा कर्मी अपनी जान जोखिम में डालकर भी अपना कर्तव्य निभाते हैं : हाईकोर्ट 

इलाहाबाद हाईकाेर्ट्

–हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को रक्षा कर्मियों के परिवारों के लिए कल्याण नीति बनाने का निर्देश दिया

प्रयागराज, 20 दिसम्बर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में सेवारत रक्षाकर्मियों के परिवारों के लिए व्यापक कल्याण और शिकायत निवारण तंत्र की आवश्यकता पर बल दिया है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में उत्तर प्रदेश सरकार को वरिष्ठ रक्षा अधिकारियों की सक्रिय भागीदारी के साथ एक नीति तैयार करने का निर्देश दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकल पीठ ने एक संवेदनशील सीमा क्षेत्र में तैनात सैन्यकर्मी की पत्नी शीतल चौधरी द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए जारी किया। याचिका में याची ने एक स्थानीय व्यक्ति पर उत्पीड़न का आरोप लगाया था।

रक्षा कर्मियों की महत्वपूर्ण भूमिका और सैन्य कर्तव्यों के कारण अलग रहने की अवधि के दौरान उनके परिवारों के सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए, न्यायालय ने टिप्पणी की, “रक्षा कर्मी अपने जीवन को जोखिम में डालकर भी अपने उच्च कर्तव्यों का पालन करते हैं। सैन्य कर्मियों के परिवार, जो अक्सर सैन्य आवश्यकताओं के कारण अलग हो जाते हैं, उसको राज्य द्वारा पूरी तरह से संरक्षित किया जाना चाहिए। उनकी सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करना एक कृतज्ञ राष्ट्र का गम्भीर दायित्व है।“

अदालत ने आगे कहा, “सैन्य सेवा की अनिवार्यताओं के कारण अक्सर सैन्य कर्मियों के परिवार अलग हो जाते हैं। एक कृतज्ञ राष्ट्र पर यह सुनिश्चित करने का गंभीर दायित्व है कि अलग हुए सैन्य कर्मियों के परिवारों को पूरी सुरक्षा मिले और राज्य सरकार द्वारा उनके कल्याण का ध्यान रखा जाए। इस तरह अलग हुए सैन्य कर्मियों के परिवार एक अनुत्तरदायी प्रशासन के कारण असुरक्षित हो जाते हैं और सैनिक एक अवैयक्तिक नौकरशाही का सामना करते हुए हताश हो जाते हैं।

इस तरह अलग हुए रक्षा कर्मियों के परिवारों को राज्य द्वारा त्यागा नहीं जा सकता या उन्हें उनके हाल पर नहीं छोड़ा जा सकता। राज्य का पवित्र वचन और राज्य के अधिकारियों का पवित्र कर्तव्य सैन्य सेवा की अनिवार्यताओं के कारण अलग हुए सैन्य कर्मियों के परिवारों की सुरक्षा, भलाई और कल्याण सुनिश्चित करना है। वचन को पूरा करना राज्य के अधिकारियों का कर्तव्य है। इस आश्वासन से हमारे सीमाओं की रक्षा करने वाले रक्षा कर्मियों के दिलों को खुशी और आत्मा को मजबूती मिलनी चाहिए।“

पीठ ने स्थानीय अधिकारियों की निष्क्रियता की आलोचना की, जो याचिकाकर्ता के पति के लिखित अनुरोध के बावजूद उसकी शिकायतों का समाधान करने में विफल रहे। यह देखते हुए कि यह उपेक्षा राष्ट्र की रक्षा करने वाले सैनिकों के मनोबल को कमजोर करती है, न्यायालय ने ऐसे परिवारों की रक्षा और सहायता करने के लिए राज्य के “पवित्र कर्तव्य“ को रेखांकित किया।

न्यायालय ने राज्य सरकार के लिए कई प्रमुख उपाय सुझाए। नीति निर्माण : तीनों सशस्त्र सेवाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ रक्षा अधिकारियों से इनपुट लेकर एक कल्याण और शिकायत निवारण योजना विकसित की जानी चाहिए। कोर्ट ऐसे ही कई सुझाव प्रदेश सरकार को दिया है।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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