Bihar

भोजपुरी समागम का उदेश्य भाषा को विमर्श मूलक संवाद स्थापित करना है : प्रो पृथ्वीराज सिंह

भोजपुरी समागम को संबोधित करते वक्तागण

पटना, 20 दिसम्बर (Udaipur Kiran) । बिहार में सारण जिले के सिताबदियारा , लाल टोला में स्थित जेपी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट द्वारा भोजपुरी समागम बीते 7- 8 दिसंबर को पर संपन्न हुआ। समागम के मुख्य संयोजक प्रो पृथ्वीराज सिंह ने कहा की भोजपुरी समागम का मुख्य उद्देश्य भोजपुरी भाषा, संस्कृति और इस जनपद के जनजीवन को प्रभावित करने वाले सभी मुद्दों पर विमर्श मूलक संवाद स्थापित करना है । साथ ही भाषा के सुघर अश्लीलतामुक्त मूल स्वरूप को भी प्रदर्शित करना है।

उद्घाटन के बाद प्रथम साहित्यिक सत्र के मुख्य वक्ता भूतपूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष बी एच यू प्रो सदानंद साहिब ने तुलसीदास के एक दोहे के उद्धरण रूप में कहा ,“ राम नाम मणि दीप धरी डीह देहरी द्वार तुलसी भीतर बाहिरेहु जो चाहत उजियार ”यदि अंतस और बाह्य भी को उजियार करना है तो राम नाम के मणि दीप को जिह्वा पर धारण करना चाहिए । दरवाजे की देहरी पर दिए को रखना चाहिए ।

तिब्बती अध्ययन केंद्र सारनाथ से आए प्रो राम सुधार सिंह ने कहा की लोक साहित्य को समृद्ध करने में जनपदीय बोलियां का बहुत योगदान है। लोकगीत, लोकनाट्य, लोक कथाएं आदि सभी विधाओं को जनपदीय बोलियां ने आदिकाल से सजाया और संवारा है । जिस भाषा को दूसरी भाषा के शब्दों को ग्रहण करने की अधिक शक्ति होती है वह समृद्ध होती है ।

समागम में शिरकत करने वाले स्थानीय सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल ,विधायक सी एन गुप्ता , विधान पार्षद डॉ वीरेंद्र नारायण यादव और बलिया के पूर्व सांसद वीरेंद्र सिंह ‘मस्त’ ने कहा कि वे भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता दिए जाने की बात हर प्लेटफार्म पर उठाते रहे हैं और पुनः उठाएंगे।

भोजपुरी समागम के मुख्य संयोजक प्रो पृथ्वीराज सिंह ने अपने बीज वक्तव्य में इसके उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा की समागम भोजपुरी भाषा की उन्नति इसके संवैधानिक मान्यता के साथ-साथ भोजपुरी जनपद की सभी प्रासंगिक समस्याओं और विषयों पर विमर्श का पक्षधर है ।

वर्ष 2024 के आयोजन की मुख्य विशेषताओं के बारे में उन्होंने बताया कि इस बार काठमांडू के फोटो जर्नलिस्ट नवीन बराल आए । उनकी टीम ने तिब्बत में सरयू के उद्गम नाम मयूरमुख से सिताब दियारा में गंगा से मिलन तक की यात्रा की थी। यह यात्रा 2018 में की गई थी जिसमें बीबीसी के संवाददाता रमेश भुसाल, नेपाल के नदी योद्धा मेघ अले और एक भू वैज्ञानिक थे। भारत में इस यात्रा को आगे बढ़ाया था बहराइच के प्रगतिशील किसान ध्रुव कुमार ने । नबीन बराल के साथ ध्रुव कुमार भी आए थे ।

दूसरे दिन के साहित्यिक सत्र में देश भर के ख्यातिलब्ध भोजपुरी लेखक और विद्वान शामिल हुए ।

अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष बृजभूषण मिश्रा, महामंत्री प्रो जयकांत सिंह ‘ जय’ आदि ने भोजपुरी की संवैधानिक मान्यता और इसके शास्त्रीय भाषा के रूप में दावेदारी के भी पक्ष में अपने विचारों को रखा। इस सत्र का बीज वक्तव्य रखते हुए प्रो पृथ्वीराज सिंह ने कहा कि भारत सरकार ने इस वर्ष पांच भाषाओं को शास्त्रीय भाषा की मान्यता दी है। वे हैं उड़िया ,मराठी, बंगला, पाली और प्राकृत। इस प्रकार देश कुल 11 भाषाएं शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त कर चुकी हैं ।

मुख्य संयोजक प्रो पृथ्वी राज सिंह ने हजारी प्रसाद द्विवेदी की पुस्तक “नाथ सिद्धों की रचनाएं, किताबघर, 2023 को संदर्भित करते हुए कहा कि भोजपुरी साहित्य की परंपरा सिद्ध और नाथ संतों से शुरू होती है और इसका काल 8वीं से 12वीं शताब्दी तक बताया जाता है। ये संत भोजपुरी जनपद में विचरण करते थे और लोक भाषा में अपने शिक्षाओं को प्रकाशित करते थे। उनके वचनों में गहन दार्शनिक आध्यात्मिक चिंतन है और तत्कालीन समाज के साथ-साथ आज का समाज भी उनसे काफी प्रभावित और लाभान्वित हुआ है। गुरु मत्स्येंद्र नाथ, गोरखनाथ ,जालंधर नाथ ,कबीर दास आदि संतों की वाणियों का व्यापक प्रभाव आज भी हमारे समाज में देखने को मिलता है। मुख्य संयोजक प्रो पृथ्वीराज सिंह ने कहा कि इस दिशा में विश्वविद्यालयों में व्यापक शोधकर, तार्किक आधार तैयार आधार पर दस्तावेज तैयार कर केंद्र सरकार को भोजपुरी के शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता के लिए भेजा जाना चाहिए।

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(Udaipur Kiran) / गोविंद चौधरी

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