RAJASTHAN

अति दुर्लभ रक्त समूह ने बढ़ाई प्रसाविका की परेशानी, मुम्बई से मंगवा कर चढ़ाया खून तो बची जान

प्रसूता को चढ़ाया अति दुर्लभ रख समूह बॉम्बे ब्लड।

चित्तौड़गढ़, 19 दिसंबर (Udaipur Kiran) । वैसे तो दुर्लभ रक्त समूह के रक्तदाताओं से आवश्यकता होने पर रक्तदान करवाया जाता है। इससे जरूरतमंद को मौके पर रक्त मिल सके। लेकिन दुनिया भर में अति दुर्लभ कहे जाने वाले रक्त समूह की एक प्रसविका की स्थिति बिगड़ जाने पर रक्त नहीं मिल पाया। इसे गुजरात रेफर किया गया और मुम्बई से रक्त लाकर चढ़ाया गया। तब जाकर महिला की जान बच पाई, जबकि इसके 6 महीने के गर्भस्थ शिशु की मृत्यु हो गई।

एटीबीएफ के कॉर्डिनेटर ललित टेहलीयानि व डॉ. भीमराव अम्बेडकर ब्लड फाउंडेशन के मनोज बैरवा ने बताया कि बुधवार रात्रि ढाई बजे के बाद उन्हें सूचना मिली की बेगूं निवासी संगीता रेगर (19) नाम की महिला प्रेगनेंसी के कारण भारी तकलीफ उठा रही है। उसे आपातकालीन स्थिति में उदयपुर रेफर किया गया है। जानकारी मिली की 6 माह के बच्चे की गर्भ में ही मृत्यु हो जाने के कारण महिला के शरीर में एचबी लेवल महज 2 रह गया था। जब महिला के रक्त ग्रुप की जांच की तो उसमें बोम्बे ब्लड ग्रुप पाया गया। तलाश करने पर पूरे राजस्थान व गुजरात में इस ग्रुप का रक्त नहीं मिल पाया। चिकित्सकों व परिजनों ने जब हाथ खड़े कर दिए तो संस्थाओं के पदाधिकारियों ने उन्हें हौंसला दिया। चिकित्सक से बात की और बाद में एटीबीएफ के दिनेश वैष्णव भी ब्लड ग्रुप की व्यवस्था में लग गए। महिला को उदयपुर से अहमदाबाद रेफर किया गया और एटीबीएफ व अन्य लोगों के सहयोग से मुम्बई से ब्लड ग्रुप का रक्त मंगवाया गया। हवाई जहाज के माध्यम से यह खून गुजरात के एक साथी द्वारा लाकर चढ़वाया। तब जाकर महिला की जान बची। दो यूनिट मुम्बई के निवासियों द्वारा गुजरात आकर डोनेट किया, जबकि दो यूनिट रक्त पूणे से मंगवा कर रखवाया गया है। एटीबीएफ के मुकेश शर्मा ने बताया कि महिला स्वस्थ है और चित्तौड़गढ़ जिले में इस रक्त समूह का पहला मामला सामने आया है।

यह है बोम्बे ब्लड ग्रुप

बोम्बे ब्लड ग्रुप एक दुर्लभ रक्त समूह है और इसकी खोज 1952 में डॉक्टर वाईएम भेंडे ने मुम्बई में की थी। तभी से इस ब्लड ग्रुप को बोम्बे ब्लड ग्रुप के नाम से जाना जाता है। इस ब्लड समूह को तकनीकी भाषा में एचएच या ओएच रक्त समूह के नाम से भी जानते है। दुनिया भर में महज 0.0004 प्रतिशत आबादी में ही यह रक्त पाया जाता है और भारत में 10 हजार से अधिक लोगों में से एक व्यक्ति में यह ब्लड ग्रुप मिलता है।

शुगर मालिक्यूल नहीं बनते इस रक्त समूह में

बोम्बे ब्लड ग्रुप में लाल रक्त कोशिकाओं की सतह पर ए और बी एंटीजन नहीं होते है और जानकारी है कि इस ब्लड ग्रुप के लोगों में शुगर मालिक्यूल नहीं बन पाते है वहीं खून में मौजूद प्लाजमा में एंटी बॉडी ए, बी और एच होती है। बड़ी बात यह है कि बोम्बे ब्लड ग्रुप के लोग बोम्बे ब्लड ग्रुप वाले लोगों से ही खून ले सकते है। यही कारण है कि इस ग्रुप के डोनर नहीं मिल पाते है।चिकित्सकों की सलाह है कि बोम्बे ब्लड ग्रुप के लोग पहले से ही अपने ग्रुप की जानकारी चिकित्सक को दे दे। दूसरे ग्रुप का खून चढ़ाने पर मरीज की जान खतरे में पड़ सकती है। बताया जाता है कि बोम्बे ब्लड ग्रुप अनुवांशिक होता है और एक से दूसरी पीढ़ी में पहुंचता है।

—————

(Udaipur Kiran) / अखिल

Most Popular

To Top