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भागलपुर, 18 दिसंबर (Udaipur Kiran) । कला केंद्र भागलपुर में बुधवार को गंगा मुक्ति आंदोलन के कोर कमेटी की बैठक नरेश महाल्दार की अध्यक्षता में हुई। बैठक में यह चिंता व्यक्त की गई कि भागलपुर का वन विभाग बिहार सरकार द्वारा घोषित निःशुल्क शिकार माही के अधिकार को शिथिल करने पर तुली है।
भागलपुर में डॉल्फिन अभ्यारण की अधिसूचना 22 अगस्त 1990 को जारी हुई है जबकि इसके बाद 11 दिसंबर 1991 को गंगा नदी को पारंपरिक मछुआरों हेतु निःशुल्क घोषित किया गया। बिहार सरकार की यह मंशा रही है कि पारंपरिक मछुओं को आजीविका मिल सके लेकिन वन विभाग षड्यंत्र पूर्ण तरीके से मछुओं को मछली मारने से रोक रहा है।
मौखिक तौर पर वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी कहते हैं कि मछली मारने पर प्रतिबंध है जबकि जब मछुओं पर कार्रवाई की जाती है तो कहां जाता है कि इन पर इसलिए कार्रवाई की गई कि ये अवैध जाल चला रहे थे। सच्चाई यह है कि वन विभाग से सटे हुए गंगा में मसहरी जल से बाड़ी बांधा गया है। बैरिया से बरारी तक गंगा की छोटी धारा में करीब 8-10 जगह अवैध मसहरी जल से बड़ी बांधा गया है। लोग बताते हैं कि वन विभाग के कर्मचारी और दलाल ऑनलाइन अवैध वसूली करते हैं।
गंगा में क्रूज चलाने, नगर निगम के कचरा और प्रदूषण तथा फरक्का डैम से डॉल्फिन पर खतरा है लेकिन वन विभाग इसके लिए कुछ नहीं करती। वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों पर मुकदमा चलाने, उसके भ्रष्टाचार पर रोक लगाने और बिहार सरकार द्वारा घोषित शुल्क शिकार माही के अधिकार के साथ छेड़छाड़ के विरोध में दिनांक 23 दिसंबर को भागलपुर में जिलाधिकारी कार्यालय के समक्ष धरना दिया जाएगा।
धरना में, जिला के मछुआरे, किसान और न्याय प्रिय नागरिक धरना में शामिल होंगे। धरना में जल श्रमिक संघ, बिहार प्रदेश मत्स्य जीवी जल श्रमिक संघ, गंगा मुक्ति आंदोलन आदि संगठनों से जुड़े लोग भाग लेंगे। बैठक में उदय, स्मिता कुमारी, अर्जुन शर्मा, मृदुल सिंह, सौरभ कुमार, कृषिका, राहुल, मनोज कुमार आदि मौजूद थे।
(Udaipur Kiran) / बिजय शंकर
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