Uttrakhand

यति नरसिंहानंद गिरि ने मुख्यमंत्री धामी को लिखा रक्त से पत्र, विश्व धर्म संसद की मांगी अनुमति 

खून से पत्र लिखते यति नरसिंहानंद गिरि

हरिद्वार, 18 दिसंबर (Udaipur Kiran) । श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरि महाराज ने पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की धमकी से त्रस्त होकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को रक्त से पत्र लिखा।

पत्र में उन्होंने लिखा कि वह और उनके कुछ साथी बांग्लादेश, पाकिस्तान सहित भारत में हिंदुओं के चल रहे नृशंस नरसंहार से व्यथित होकर उनकी पीड़ा को दुनिया भर तक पहुंचाने के लिए माया देवी मंदिर श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़े में 19 से 21 दिसंबर को विश्व धर्म संसद का आयोजन कर रहे हैं। हमारा यह आयोजन किसी सार्वजनिक स्थान पर नहीं बल्कि हमारे अखाड़े के मुख्यालय पर हो रहा है। यह कोई भीड़ एकत्रित करके शक्ति प्रदर्शन करने का कोई राजनैतिक कार्यक्रम नहीं है, बल्कि सीमित संख्या में संतों और प्रबुद्ध नागरिकों का एक छोटा सम्मेलन है। मंदिर के अंदर होने वाले ऐसे किसी कार्यक्रम के लिए कोई अनुमति की आवश्यकता नहीं है परन्तु हरिद्वार के प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी शायद हिंदुओं को दोयम दर्जे का नागरिक मानते हैं और हम पर इसके लिए अनुमति मांगने का दबाव बना रहे हैं।

उन्होंने लिखा कि वह मुख्यमंत्री से जानना चाहते हैं कि क्या मस्जिद, चर्च या गुरुद्वारे में ऐसे किसी आयोजन के लिए कभी कोई अनुमति मांगी गई या कभी प्रदान की गई है? फिर हम पर ही क्यों ये दबाव बनाया जा रहा है। क्या सरकार और सरकारी अधिकारियों की नजर में हिंदुओं के मंदिरों की हैसियत मस्जिदों, चर्चों या गुरुद्वारों से कम है? क्या अब हिंदुओं को अपने धर्म बंधुओं की नृशंस हत्याओं पर रोने के लिए भी सरकार की अनुमति की जरूरत पड़ेगी।

उन्होंने मुख्यमंत्री से अनुरोध किया कि यह बहुत जरूरी है तो उन्हें बांग्लादेश पाकिस्तान सहित भारत में अपने धर्म बंधुओं के नृशंस नरसंहार पर विलाप करने के लिए 19 से 21 दिसंबर को माया देवी मंदिर श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़े में विश्व धर्म संसद आयोजित करने की अनुमति प्रदान करें।

उन्होंने इस पत्र की प्रतिलिपि हरिद्वार जिलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक व सिटी मजिस्ट्रेट को भी भेजी है। महायज्ञ स्थल पर महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरी महाराज के साथ विश्व धर्म संसद की मुख्य संयोजक डॉ उदिता त्यागी, स्वामी महाकाल गिरी, पंडित अधीर कौशिक, आचार्य पवन कृष्ण शास्त्री, सहदेव भगत के साथ साधु-संत भी उपस्थित थे।

(Udaipur Kiran) / डॉ.रजनीकांत शुक्ला

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