Madhya Pradesh

भोपालः जनजातीय संग्रहालय में हुई गायन और नृत्यों की प्रस्तुति

भोपालः जनजातीय संग्रहालय में हुई गायन और नृत्यों की प्रस्तुति
भोपालः जनजातीय संग्रहालय में हुई गायन और नृत्यों की प्रस्तुति

भोपाल, 15 दिसंबर (Udaipur Kiran) । जनजातीय संग्रहालय में नृत्य, गायन एवं वादन पर केंद्रित गतिविधि संभावना आयोजित की जा रही हैं। इसमें रविवार को परण राज भाटिया, भिलाई एवं संजना गुहा एवं साथी, बिहार द्वारा भजनों की प्रस्तुति और सोनी मालवीय, राजगढ़ मटकी नृत्य एवं साधोराम, बालाघाट करमा नृत्य की प्रस्तुति दी गई।

गतिविधि में परण राज भाटिया ने तुम मेरी राखो लाज हरि…,जय राधा माधव, जय कुंज बिहारी…, चदरिया झीनी रे झीनी…, मुरली मनोहर गोपाला…, भजनों की प्रस्तुति दी वहीं संजना गुहा ने जाके प्रियन राम वैदेही…,नन्द नन्दन बिलमाई (मीरा बाई)…, कौन मिलावे मोठे जोगीया हो (कबीर)…, सखी री लाज बैरन भई (मीरा बाई…, जैसे कई भजनों की प्रस्तुति दी गई।

अगले क्रम में सोनी मालवीय ने मटकी नृत्य की प्रस्तुति दी। मालवा में मटकी नृत्य का अपना अलग परम्परागत स्वरूप है। विभिन्न अवसरों पर मालवा के गांव की महिलाएं मटकी नृत्य करती हैं। ढोल या ढोलक को एक खास लय जो मटकी के नाम से जानी जाती है, उसकी थाप पर महिलाएं नृत्य करती हैं। प्रारम्भ में एक ही महिला नाचती है, इसे झेला कहते हैं। महिलाएं अपनी परम्परागत मालवी वेशभूष में चेहरे पर घूंघट डाले नृत्य करती हैं। नाचने वाली पहले गीत की कड़ी उठाती है, फिर आसपास की महिलाएँ समूह में कड़ी को दोहराती है। नृत्य में हाथ और पैरों में संचालन दर्शनीय होता है। नृत्य के केद्र में ढोल होता है। ढोल पर मटकी नृत्य की मुख्य ताल है। ढोल किमची और डण्डे से बजाया जाता जाता है। मटकी नाच को कहीं-कहीं आड़ा-खड़ा और रजवाड़ी नाच भी कहते हैं।

वहीं साधोराम ने करमा नृत्य की प्रस्तुति दी। करमा नृत्य बैगा जनजाति का प्रमुख लोक नृत्य है। इस नृत्य में बैगा अपने कर्म को नृत्य-गीत के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। इसी कारण इस नृत्य-गीत को करमा कहा जाता है। करमा नृत्य विजयदशमी से वर्षा के प्रारंभ होने तक चलता है। नृत्य में बैगा पुरुष बीच में खड़े होकर वाद्ययंत्र बजाते हैं और महिलाएं गोल घेरे बनाकर एक दूसरे के घूम-घूम कर गीत गाते हुए नृत्य करती हैं एवं हाथ में ठिसकी (वाद्ययंत्र) होता है। इस नृत्य में स्त्री एवं पुरुष दोनों समूह में भाग लेते हैं।

उल्लेखनीय है कि जनजातीय संग्रहालय में हर रविवार को होने वाली गतिविधि में मध्यप्रदेश के पांच लोकांचलों एवं सात प्रमुख जनजातियों की बहुविध कला परंपराओं की प्रस्तुति के साथ ही देश के अन्य राज्यों के कलारूपों को देखने समझने का अवसर भी दर्शकों को प्राप्त होता है।

(Udaipur Kiran) तोमर

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