Uttar Pradesh

हिरण्यकश्यप और भक्त प्रहलाद की कथा सुन श्रोता हुए भाव विभोर

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औरैया, 15 दिसंबर (Udaipur Kiran) । दिबियापुर नगर स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर में श्रीमद् भागवत कथा के पांचवें दिन भगवताचार्य पंडित गिरीश चंद्र द्विवेदी ने महर्षि कश्यप के दो पुत्र हिरण्याच्छ और हिरण्यकश्यप की कथा का विस्तार से वर्णन किया।

इसमें भगवान विष्णु द्वारा हिरण्याच्छ का वध कर दिया जाता है। इसकाे लेकर हिरण्यकश्यप अपने भाई की मृत्यु का बदला भगवान विष्णु से लेने की प्रतिज्ञा करता है कि वह उनका वध अवश्य करेगा। इसके लिए उसने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। उसने दोनों पैरों के नाखूनों पर खड़े होकर ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की। ब्रह्मा जी उसकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने को कहते हैं तो वह अमरता का बरदान मांगता है। ब्रह्मा जी ने कहा अमर करने का वरदान नहीं दिया जा सकता। यहां कोई अमर नहीं है। इसलिए अन्य कोई वरदान मांग लो। इस पर वह वरदान मांगता है – मैं न दिन में मरूं, न रात में, न अस्त्र-शस्त्र से, न मनुष्य से और न जानवर से, न घर में न घर से बाहर। इस पर ब्रह्मा जी ने तथास्तु कहकर उसके द्वारा मांगे गए सभी वरदान दे दिए। इसके बाद हिरण कश्यप ने ऋषि मुनियों के यज्ञों और उनके आश्रमों को विध्वंस करना शुरू कर दिया। कुछ समय पश्चात हरणकश्यप की पत्नी कयाधू से भक्त प्रहलाद का जन्म होता है। हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद से कहा कि मैं ही भगवान हूं। इसलिए हमारे नाम का ही जप करो लेकिन प्रहलाद को अपने भगवान पर अटूट विश्वास था। इसलिए उसने भगवान विष्णु के नाम का ही जप किया। इस पर क्रोध में आकर हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने के लिए हर सम्भव प्रयास किया। अंत में लोहे के खम्ब को गर्म करवा कर प्रहलाद को बांध दिया गया। इस पर भक्त प्रहलाद ने भगवान विष्णु का ध्यान किया तो भगवान विष्णु ने खम्ब फाड़कर नरसिंह भगवान के रूप में प्रकट होकर हिरण्यकश्यप का संहार किया और भक्त प्रह्लाद को दीर्घायु का वरदान देकर अन्तर्ध्यान हो गए।

(Udaipur Kiran) कुमार

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