—सर सुन्दरलाल चिकित्सालय के डॉक्टरों के नाम एक और उपलब्धि जुड़ी
वाराणसी,03 दिसम्बर (Udaipur Kiran) । काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सरसुंदर लाल चिकित्सालय के चिकित्सकों के नाम एक और उपलब्धि जुड़ गई है। चिकित्सकों ने दुर्लभ रोग मायस्थेनिया ग्रेविस से पीड़ित एक मरीज की सफल सर्जरी कर उसे नया जीवन दिया है। अस्पताल के शताब्दी सुपर स्पेश्यलिटी ब्लॉक में सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग में ये आपरेशन हुआ। न्यूरोलॉजी टीम ने भी इसमें सहयोग दिया। वीडियो असिस्टेड थोरेसिक सर्जरी तकनीक के माध्यम से यह सर्जरी हुई। इस शब्द का उपयोग छाती की मिनिमल इनवेसिव सर्जरी के लिए किया जाता है। जो ‘लैप्रोस्कोपी’ के समान है। इस तकनीक के कारण रोगी को तेजी से रिकवरी हुई, जो लंबे सर्जिकल घाव से बचाती है, दर्द को कम करती है और अस्पताल में रहने की अवधि को कम करती है।
आपरेशन में शामिल डॉ तरुण कुमार (थोरैसिक कैंसर सर्जन, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग) के अनुसार मायस्थेनिया ग्रेविस (एम.जी.) एक दुर्लभ ऑटोइम्यून रोग है। जो मानव शरीर की मांसपेशियों की कमजोरी के साथ प्रस्तुत होती है। एक सामान्य व्यक्ति में, मस्तिष्क तंत्रिकाओं के माध्यम से तंत्रिका और मांसपेशी के बीच इंटरफेस पर स्थित न्यूरो-मस्कुलर जंक्शन (एन.एम.जे.) को संकेत भेजता है, जो तब मांसपेशी को अपनी क्रिया करने की अनुमति देता है। एम.जी. में, शरीर इस एन.एम.जे. के लिए एंटीबॉडी विकसित करता है जो मांसपेशियों को इच्छित मांसपेशी कार्य करने से रोकता है। जिससे प्रभावित व्यक्ति की पलकें झुक जाती हैं, दृष्टि धुंधली हो जाती है, चलने में कठिनाई होती है आदि। सबसे खराब स्थिति में, यह रोग मानव डायाफ्राम को प्रभावित कर सकती है, जिससे जीवन के लिए खतरा पैदा हो सकता है। जहां पीड़ित व्यक्ति सांस लेने में असमर्थ हो जाता है। एमजी से पीड़ित कुछ प्रसिद्ध भारतीय हस्तियां अभिनेता अमिताभ बच्चन और दिवंगत अरुण बाली भी रही हैं। एम.जी. का उपचार मुख्य रूप से न्यूरोलॉजिस्ट द्वारा दवाओं और प्लाज्मा को फिल्टर करने (जिसे प्लास्मफेरेसिस के रूप में जाना जाता है) के माध्यम से किया जाता है। हालाँकि, जब यह ऐसी स्थिति में पंहुच जाए जब इसे संभालना संभव न हो, या दवाओं का असर न हो अथवा मरीज दवाओं के दुष्प्रभावों को बर्दाश्त नहीं कर पाता, तब ‘थाइमेक्टॉमी’ के रूप में सर्जरी की जाती है।
“थाइमेक्टोमी” थाइमस ग्रंथि को हटाने की प्रक्रिया है। यह ग्रंथि हृदय के ठीक ऊपर स्थित होती है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि थाइमस ग्रंथि एन.एम.जे – एंटीबॉडी का मुख्य उत्पादन केन्द्र है। यह सर्जरी एक कठिन और दुर्लभ प्रक्रिया है। सर्जरी में डॉ निमिषा वर्मा (एनेस्थेसियोलॉजिस्ट), डॉ शायक रॉय (एनेस्थेसियोलॉजिस्ट), विनय जैन (स्क्रब नर्स), स्टाफ नर्स प्रतिमा (ओ.टी. प्रभारी), बी.बी.गिरी (ओ.टी. तकनीशियन) और हर्ष सिंह (ओ.टी. तकनीशियन) ने सहयोग दिया। सर्जरी से पहले और बाद में मरीज का इलाज डॉ अभिषेक पाठक (न्यूरोफिजिशियन, एस.एस.एच. बी.एच.यू.) की विशेषज्ञता के तहत न्यूरोलॉजी टीम ने किया।
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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी