– कर्म की प्रेरणा देने वाला नृत्य है करमा
भोपाल, 1 दिसंबर (Udaipur Kiran) । जनजातीय संग्रहालय में नृत्य, गायन एवं वादन पर केंद्रित गतिविधि संभावना का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें रविवार को हास्यकुमारी मरावी एवं साथी, डिण्डोरी द्वारा गोण्ड जनजातीय करमा नृत्य की प्रस्तुति दी गई। वहीं, परमानंद केवट एवं साथी, विदिशा द्वारा ढिमरियाई नृत्य की प्रस्तुति दी गई। कलाकारों द्वारा संग्रहालय परिसर में नृत्य की प्रस्तुति दी गई।
करमा कर्म की प्रेरणा देने वाला लोकनृत्य है। ग्रामीणों में श्रम का महत्व है, श्रम को ही ये कर्मदेवता के रूप में मानते हैं। पूर्वी मध्यप्रदेश में कर्मपूजा का उत्सव मनाया जाता है। उसमें करमा नृत्य किया जाता है, परन्तु विन्ध्य और सतपुड़ा क्षेत्र में बसने वाले जनजातीय कर्मपूजा का आयोजन नहीं करते। नृत्य में युवक-युवतियाँ दोनों भाग लेते हैं, दोनों के बीच गीत रचना की होड़ लग जाती है। वर्षा को छोड़कर प्रायः सभी ऋतुओं में गोंड जनजातीय करमा नृत्य करते हैं। यह नृत्य जीवन की व्यापक गतिविधि के बीच विकसित होता है, यही कारण है कि करमा गीतों में बहुत विविधता है। वे किसी एक भाव या स्थिति के गीत नहीं है उसमें रोजमर्रा की जीवन स्थितियों के साथ ही प्रेम का गहरा सूक्ष्म भाव भी अभिव्यक्त हो सकता है। मध्यप्रदेश में करमा नृत्य-गीत का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। सुदूर छत्तीसगढ़ से लेकर मंडला के गोंड और बैगा जनजातियों तक इस नृत्य का विस्तार देखने को मिलता है।
वहीं, ढिमरियाई बुन्देलखण्ड की ढीमर जाति का पारम्परिक नृत्य-गीत है। इस नृत्य में मुख्य नर्तक हाथ में रेकड़ी वाद्य की सन्निधि से पारम्परिक गीतों की नृत्य के साथ प्रस्तुति देते हैं। अन्य सहायक गायक-वादक मुख्य गायक का साथ देते हैं।
गौरतलब है कि जनजातीय संग्रहालय़ में हर रविवार को दोपहर 2 बजे से यह गतिविधि आयोजित होती है। इसमें प्रदेश के पांच लोकांचलों एवं सात प्रमुख जनजातियों की बहुविध कला परम्पराओं की प्रस्तुति के साथ ही देश के अन्य राज्यों के कलारूपों को देखने समझने का अवसर भी दर्शकों को प्राप्त होगा। सभी प्रस्तुतियां संग्रहालय परिसर में ही होंगी।
(Udaipur Kiran) तोमर