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सेना का सद्भावना प्रोजेक्ट: पूर्वोत्तर की सीमाओं पर देशभक्ति का एक और नया अध्याय

Bene Aar
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अरुणाचल पदेश के दरका गांव में सद्भावना प्रोजेक्ट

अलोंग/ईटानगर, 28 नवंबर (Udaipur Kiran) । भारतीय सेना पूर्वोत्तर भारत के दुर्गम और सीमावर्ती इलाकों में अपने सद्भावना प्रोजेक्ट के माध्यम से लोगों की जरूरतों को पूरा करने के साथ ही उनके और देश के बाकी हिस्सों के बीच दिलों की दूरियां भी कम कर रही है। इसी का नतीजा है कि जब अरुणाचल प्रदेश के लोगों से चीन के बारे में सवाल किया जाता है तो वे कहते हैं कि चीन आएगा तो सेना से पहले हम लड़ने के लिए तैयार मिलेंगे। प्रदेश के पश्चिम सियांग जिले के सद्भावना गांव दरका और बेने के लोगों की मानें तो उनके जीवन स्तर में काफी सुधार हुआ है। इन गांवों में छोटे से बड़े हर कार्यक्रम में सेना के जवान भागीदार बनते हैं।

अरुणाचल प्रदेश में दुर्गम पहाडी इलाके हैं। कई नदियां हैं। लोगों को एक से दूसरे गांव जाने के लिए भी काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। सेना अपने सद्भावना प्रोजेक्ट के तहत इन सीमावर्ती गांवों में रहने वालों की ऐसी मूलभूत समस्याएं भी दूर कर रही है। इन क्षेत्रों में सेना की ओर से नदियों पर फुट सस्पेंशन पुल और जंगल में हंटर हाउस भी तैयार किए जा रहे है। मौनचुका वैली और मानेगांव वैली जैसे दूरदराज के क्षेत्रों में वाइब्रेंट विलेज बनाए गए हैं। इसके साथ इन गांवों में स्कूल, हैल्थ सेंटर, फिटनेस सेंटर, कौशल विकास केंद्र आदि भी तैयार कराए गए हैं।

अलोंग टाउन के पास स्थित दरका और बेने गांव में सेना की ओर से खेल मैदान, बच्चों के स्कूल में खेल सुविधाएं और गांव के लिए कम्पोस्ट खाद बनाने की मशीन जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराई है। गांवों के युवाओं और महिलाओं के कौशल विकास और उन्हें खेलों के लिए तैयार करने के लिए भी सेना यहां काम कर रही है। उन्हें सेना में भर्ती और अन्य सरकारी भर्तियों की तैयारी के लिए कोचिंग भी कराई जाती है।

दरका गांव के गांव बूढा (मुखिया) मैडम एते कहते हैं- आज से कुछ साल पहले तक हम लोग सेना से दूरी बनाकर रखते थे। सेना को देखते ही डरकर चले जाते थे, लेकिन आज सेना हमारी कई जरूरतों को पूरा कर रही है। हमारे सुख-दुख में साथ खड़ी रहती है।

बेने गांव के अपर प्राइमरी स्कूल के प्रिंसीपल टुमटो एतो कहते हैं कि “हमारे और देश के बाकी हिस्सों के बीच दूरियां कम करने में सेना की अहम भूमिका दिख रही है। यह बदलाव पिछले दस सालों में आया है।“ यहां तैनात सेना के अधिकारी बताते हैं- “यहां के लोगों में प्रतिभा की कमी नहीं है, बस उन्हें सही अवसरों की जरूरत है। हम यहां उनके लिए यही अवसर पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।“

अपनी विरासत और देशभक्ति का अदम्य जज़्बाअरुणाचल प्रदेश के लोगों में अपनी विरासत और देशभक्ति का अदम्य जज्बा है। दरका गांव के 62 वर्षीय मेडम एटे कहते हैं- “हम भारतीय हैं। भारतीय होने पर हमें गर्व है। अगर चीन भारत में घुसपैठ करता है तो सबसे पहले हम उसका सामना करेंगे। देश के विकास के मुद्दे पर वे कहते हैं- “हर कोई बेहतर सड़कें, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा और सुविधाएं चाहता है। अगर हम विकास करेंगे, तभी देश आगे बढ़ेगा। धीरे-धीरे सरकारी योजनाएं हम तक पहुंच रही हैं। केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद काम करने का तरीका बदल गया है। विकास में तेजी आई है।”

डार्का गांव के अध्यक्ष (सरपंच) केम्बा एटे कहते हैं- “केंद्र के सहयोग और भारतीय सेना की मदद से उनके गांव में कई विकास कार्य हो रहे हैं। हमें विभिन्न कार्यों के लिए मनरेगा के तहत धन मिल रहा है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत लोगों को मुफ्त राशन मिल रहा है। गांवों में सड़कें बनाई गई हैं। सेना का ग्रामीणों के साथ दोस्ताना संबंध है। वे हमारे लिए जरूरी हैं। वे मुश्किल समय में हमेशा हमारे साथ खड़े रहते हैं। चाहे स्कूलों का जीर्णोद्धार हो या सामुदायिक भवन का निर्माण, सेना ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है।”

गांव बूढ़ों की प्रभावी भूमिका, गांव में सुलझ जाते है 80 फीसदी विवाद

अरुणाचल प्रदेश में पंचायतीराज व्यवस्था के साथ ही ‘गांव बूढ़ा’ (मुखिया) की व्यवस्था भी मौजूद है। हर गांव में एक सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है जिसे पूरे गांव वाले ‘गांव बूढा’ के रूप में नामित करते हैं। यह गांव बूढा लाल कोट पहनता है। इसे सरकारी मान्यता प्राप्त होती है। इनके पास न्यायिक अधिकार भी होते हैं। गांव में होने वाले विवाह, जमीन, पशुओं से जुड़े विवाद, मारपीट आदि से जुडे विवाद ये गांव बूढा ही सुलझाते हैं। इसके लिए पंचायत बुलाकर दोनों पक्षों को सुना जाता है और समझौते के जरिए मामले को सुलझाया जाता है। सामान्यत: एक ग्राम बूढ़ा अपने पूरे जीवन काल तक इस पद पर रह सकता है। हालांकि इनके फैसले से कोई संतुष्ट ना हो तो उपर अपील कर सकता है। सामाजिक व्यवस्था में महिलाओं का महत्व कम नहीं है और वे भी काफी सक्रिय है। पढाई के मामले में भी वे पीछे नहीं हैं और बराबर की भागीदारी रखती हैं।

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(Udaipur Kiran)

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