Uttar Pradesh

सदानीरा की धारा में मेहमान साइबेरियन पक्षियों का कलरव और अठखेलियां लोगों को भा रही

वाराणसी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ साइबेरियन पक्षियों को दाना चुगाते हुए

—अलसुबह और दोपहर में गंगा में नौकायन के दौरान श्रद्धालु और पर्यटक पक्षियों को दाना चुगा रहे,छोटे बच्चों की खुशी देखते बन रही

वाराणसी,26 नवम्बर (Udaipur Kiran) । धर्म नगरी काशी में मार्गशीर्ष माह (अगहन माह) के मध्य में ठंड और धुंध बढ़ते ही अलसुबह सदानीरा गंगा के धारा में मेहमान साइबेरियन पक्षियों का कलरव और अठखेलियां लोगों को भाने लगी हैं । अलसुबह लोग गंगा किनारे सुबहे बनारस का नजारा लेने के साथ उत्साह से साइबेरियन पक्षियों को घाट किनारे दाना चुगा रहे हैं। गंगा में नौकायन के दौरान नावों के आसपास पक्षियों का कलरव और दाना चुगना छोटे—छोटे बच्चों को भी रास आ रहा है। लोग पक्षियों को दाना चुगाने के साथ उत्साह से इनके साथ सेल्फी भी ले रहे है। गंगा नदी में इनकी अटखेलियां आकर्षण का केंद्र बन गई है। यूक्रेन और रूस के बीच साइबेरिया में ही ये पक्षी पाए जाते हैं। वहां से प्रजनन के लिए भारत की ओर रूख करते है। नवम्बर माह के शुरूआत में ही ये मेहमान प़क्षी सात समंदर पार काशी सहित देश के अन्य हिस्सों में आने के लिए सफर पर निकल पड़ते है। इस साल के शुरूआत में अपेक्षाकृत ठंड कम होने से पक्षी भी लगभग छह हजार से अधिक किलोमीटर की दूरी तय कर देर से आए। आमतौर पर पक्षी अक्टूबर माह के तीसरे सप्ताह से ही आने लगते है। पक्षी प्रेमी और एक निजी कालेज में जंतु विज्ञानी डॉ जयप्रकाश पांडेय बताते है कि साइबेरिया में ठंड के मौसम में शून्य से काफी नीचे तापमान चले जाने के कारण इन पक्षियों के ठंड से जान जा सकती है। ऐसे में मूक पक्षी वहां से दक्षिण की ओर निकल पड़ते है। लगभग 06 हजार से अधिक किलोमीटर की दूरी तय कर पक्षी काशी और देश के अन्य हिस्सों में नदियों और झीलों के पास पहुंचते है, जहां इन्हें आसानी से भोजन मिलता है। ये पक्षी नवंबर से फरवरी तक यहां रहकर प्रजनन करते हैं और यहां की जैव विविधता पर असर पहुंचाते है। ये पक्षी नदियों और तालाबों के पास स्थित पेड़ों पर अपना आशियाना बनाते है। डॅा जयप्रकाश बताते है कि सात समुंदर पार से ये पक्षी जिस रास्ते से आते हैं, उसी रास्ते से लौटते भी है। उन्हें ठहरने का स्थान पता होता है जहां ये हर साल फरवरी तक रूकते है। हजारों किलोमीटर लम्बा सफर तय करने वाले परिन्दे कभी भी रास्ता नही भटकते। न ही इनके यहां पहुंचने का समय बदलता है। प्रकृति ने इन पक्षियों को कुछ विशेष क्षमता प्रदान की है। इसी प्राकृतिक क्षमता के बल पर साइबेरिया के मौसम में शुरू होने वाले बदलाव को परिन्दे पहले से भाप लेते है कि अब मौसम बदलने वाला है। शिव आराधना समिति और ओम नम: शिवाय प्रभातफेरी के संस्थापक पक्षी प्रेमी डॉ मृदुल मिश्र बताते है कि बहुत अधिक ऊंचाई से ही उड़ने वाले साइबेरियन परिन्दे अपने पुराने रूकने के स्थान की पहचान करने के बाद ये धीरे-धीरे नीचे उतरते है। ये पक्षी फरवरी तक गंगा के किनारे और मध्य में गुजारने के बाद वापस अपने मूल देश में लौट जाते है।

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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी

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